वेद कथानक | Ved Kathanak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.23 MB
कुल पष्ठ :
541
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'कथाड़ू 1 + वैदिक शुभाशसा * ७
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वैदिक शुभाशंसा
स्वस्ति ... पन्थामनु .. चरम... सूर्यांचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताशता जानता सस गमेमहि ॥
(ऋगवेद ५1 ५१! १५)
हम अविनाशी एवं कल्याणप्रद मार्गपर चल । जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा चिरकालसे नि सदेह होकर बिना किसीका
आश्रय लिये राक्षसादि दु्धसे रहित पथका अनुसरण कर अभिमत मार्गपर चल रहे हैं, उसी प्रकार हम भी परस्पर
स्नेहके साथ शास्त्रोपदिष्ट अभिमत मार्गपर चले।
गौरीरमिंमाय सलिलानि तक्षत्येकपदी द्विपदी सा चतुष्पदी।
अष्टापदी नवपदी 'घभूवुपी सहस्राक्षरा परमें व्योमन्॥
(अवेद १। १६४1 ह३)
उच्चरित की जानेवाली शब्दब्रह्मात्मिका वाणी शब्दका रूप धारण कर रही है। अव्याकृत आत्मभावसे सुप्रतिष्ठित
यह वाणी समस्त प्राणियोके लिये उनके वाचक शब्दाको सार्थक बनाती हुई सुबन्त और तिडन्त-भेदासे पादद्ययवती,
नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात-भेदासे चतुप्पदी, आमन्त्रण आदि आठ भेदासे अप्टपदी और अव्यय-पदसहित
नवपदी अधवा नाभिसहिंत उर , कण्ठ, तालु आदिं भेदासे नवपदी बनकर उत्कृष्ट हदयाकाशमे सहस्राक्षरा-रूपसे व्याप्त
होकर अनेक ध्वनि-प्रकाराको धारण करती हुई अन्तरिक्षमे व्याप्त यह दैवी वाणी गौरीस्वरूपा है।
अपामीवामप सखरिधमप .... सेधत दुर्मतिम्।
आदित्यासा 'युयोतना नो अहस ॥
(ऋषेद ८1 १८1 १०)
*हे अखण्ड नियमाके पालनेवाले देवगणो ( आदित्यास )। हमारे रोगांको दूर करा, हमारी दुर्मतिका दमन करो तथा
पाषोको दूर हटा दो।' सूर्यकी आराधना और प्राकृतिक नियमांके पालन करनेसे रोग दूर होते हैं, स्वास्थ्य स्थिर रहता
है। स्थिर स्वास्थ्यसे सुमति होती है और सुमति पापको दूर हटाती है।
प्रजापते न त्वदेतान्यन्या विश्वा रूपाणि परि ता बभूव।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वय* स्याम पतयो रयीणाम्॥
(शुक्लयजुर्वेद २३। ६५)
हे प्रजापते। तुमसे भिन्न दूसरा कोई इस पृथिव्यादि भूता तथा सब पदार्थों एव रूपासे अधिक बलवान् नहीं हुआ
है, अर्थात् तुम्हीं सर्वोपरि बलवान् हो। अतएव हम जिन कामनाआसे तुम्हारा यजन करते हैं, वह हमे प्राप्त हो। जिससे
हम सब धनोके स्वामी बन।
कविमग्निमुप स्तुहि सत्यधर्माणमध्वर। देवममीवचातनम्॥।
(सामवेद १। ३े। १२)
हे स्तोताओ। यज्मे सत्यधर्मा क्रान्तदर्शी, मेधावी, तेजस्वी और रोगाका शमन करनेवाले शत्रुघातक अग्निकी स्तुति करो ।
स्तुता मया. वरदा.. बेदमाता . प्र. चोदयन्ता . पावमानी . द्विजानाम्।
आयु प्राण प्रजा पशु कीर्ति द्रविण ब्रह्मवर्चसम्। महा दत्वा ब्रजत ब्रह्मलोकम्ू ॥
(अधर्ववेद १९
पापाका शोधन करनेवाली वेदमाता हम द्विजाकों प्रेरणा दं। मनारथांको परिपूर्ण करनंवाली वेदमाताकी गा
स्तुति की है। मनो$भिलपित वरप्रदात्री यह माता हम दीर्घायु, प्राणवानू, प्रजावानू, 'पशुमान, धनवान, तेजस्वी तथा
'कोर्तिशाली होनेका आशीर्वाद देकर ही ब्रह्ललाकको पधार।
/तनिसिं्रसक्ी,नन
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