वेड का राष्ट्रिय गीत | Ved Ka Rashtriy Geet

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Ved Ka Rashtriy Geet by आचार्य प्रियव्रत - Aacharya Priyavrat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ५ जीवन वन जाता है। इस प्रकार इन ब्राह्मण-प्रन्थों की सम्सति में वेद वे ग्रन्थ हैं जिन में मनुष्य के जीवन को दिव्य बना कर उसे मृत्यु के भय से पार उत्तारने मौर अमरता की शरोर ले जाने वाले उपदेश दिये गये हैं। वेद्‌ अरौ उपनिषद्‌ भारतीय साहित्य में उपनिषदों का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है उस के सम्बन्ध में यहां अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है । उपनिपदों की तुलना के दूसरे ग्रन्थ संस्कृत-साहिलय में तो हैँ ही नहीं, संसार की किसी अन्य भाषा के साहित्य में भी इन की तुलना के अन्थ नहीं मिल सकते । विश्व-साहित्य सें उपनिपद्‌ अपने ढंग के अफेले हैँ । उपनिपदों में भारतीय अध्यात्म-चिन्तना अपनी चरम सीमा तक पहुंची है । भारत और भारत से वाहर के अनेक विद्वानों ने उपनिषदों की मुक्त- कर्ठ से प्रशंसा की है। देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने उपनिपदों के अध्यात्स- विज्ञान पर बढ़े-बढ़े प्रन्थ लिखे हैँ । शोपनहार जैसे प्रसिद्ध जमेन दाशैनिक विद्वान ने उपनिषदों को जीवन में और जीवन की समाप्ति पर मृत्यु-समय में शान्ति देने वाला माना है। शहक्कुराचार्य जेसे भारतीय दार्शनिकों ने अपने दशंन-शास्त्र का सवन उपनिषदों की श्राधार-शिला पर दी खड़ा करने का प्रयत्न किया है । भारतीय परम्परा मे उपनिपदों को वेदान्त कष्टा जाता दै । इनमें वेद्‌ के श्नन्त श्रथौत्‌ अन्तिम सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है ऐसा समझा जाता है । उपनिपदों के इस वेदान्त नाम से ही वेदों और उपनिपदों के सम्बन्ध पर बड़ा सुन्दर प्रकाश पड़ जाता है । शतपथ आदि ब्राह्मण-अन्थों की वेद्‌ के सम्बन्ध में जो सम्मति है उसे अभी ऊपर दिखाया गया है ।ये ब्राह्मण वेदों की ही व्याख्याये हैं । उदाहरण के लिये, शत्तपथ न्नाह्मण यजुर्वेद्‌ की व्याख्या है । उपनिपदे प्राय इन ब्राह्मण-अ्नन्थों के दी एक भाग हं । जेसे, प्रसिद्ध बृहदारण्यक उपनिपद्‌ शतपथ ज्राह्मण का अन्तिम भाग है रौर छान्दोग्य उपनिपद्‌ छान्दोग्य ब्राह्मण का भाग है | श्नन्य उपनिपदें भी प्राय' ब्राह्मणो के दी भाग हं । त्राहमण-मन्थों से श्रलग कर के उपनिपदों करो प्रथक्‌ পল্ধাঁ के ख्य मेँ प्रचित कर दिया गया ই 1 इस लिये व्राहण-पन्यों की वेद की महत्ता के सम्बन्ध मे जो सम्मति दै वदी सम्मति वेद की महत्ता के सम्बन्ध मेँ उपनिषदों फी भी ६ । ज्राह्मणकारों ने वेदों की व्याख्या करते हए वेदों के जो छध्यात्म-विदा-विपयक सिद्धान्त सममे हू उन्हीं को उन्होंने अपनी भापा में अपने प्रन्थों के उपनिपद्-नामक प्रकरणों मे अंकित किया है 1 इस प्रकार उपनिषदं वेद के सिद्धान्तो की टी व्याख्ये हं शौर वेद की ही महिमा का गान करती द 1 प्रसिद्ध ईश-उपनिप्द्‌ तो कहीं-कहीं थोड़े शाब्दिक परिवर्तन के साथ यजुर्वेद का




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