नव उपनिषत संग्रह | Nav Upnishad Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[कु ... एफ : . न छा: एघघमादना, उाइसनशजाारा: ८ .............. एकादशोपनिषद््‌। का कक के ह द् है। हे सबके पोषक परमात्मच्‌ ! तू उस सत्य स्वरूप के द्शन के लिये उस पढ़दे को हटा दे। इसका यह आशय है कि घनका लालच ही मनुष्य को सत्य पक्ष से डिगा देता है। धनके लोभ से मनुष्य बुरे से बुरा काम कर डालता है । ऐसी दशा में सत्य... स्वरूप भगवान्‌ का दर्शन मनुष्य को कदापि नहीं हो सकता, *. . इस लिये मन्त्र में प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन्‌ ! आप उस कर शी . ढकन को हटादें, जिससे उस अविनाशी प्रभु के दर्शन हो सकें, ( यहां सत्य शब्द धर्म और इश्वर दोनों का वोचक है ) पूषलेकर्ष यंम सूयेप्राजापत्यव्यूह रश्मीनुससूह । तेजोयत्ते रुप- कल्याणतमन्तत्ते पश्यामि योघ्सावसो पुरुष: सो5्हमस्मि ॥ १ द।। ६ हे सब के पुष्ठ करने वाले ! हे एक द्रष्टा ! हे न्यायकत्तों ! है से प्रेरक अन्तर्यामिन्‌ ! हे प्रजा रक्षक राजाधिराज परमेश्वर ! आप अपनी किरणों को फैला दें, और अपने तेज को इकट्ठा करके ... मेरे दशन योग्य बना दें, ताकि ओपकी कृपा से आप के अति कल्याणकारी रूप का साक्षात्कार कर सकूं , जो वह पुरुष है वह. ... मैं हूँ। अर्थात्‌ आप मुझे इस योग्य बना दें कि मैं आपके प्रेम में... ..... इतना मग्न होजाऊँ जो आप से भिन्न झपने को न देख सकूं। ............. योइसावसी पुथ्वः सोदहमस्मि पद से कोई शद्वेतवाद का समर्थन... ........ करतेहें। और कहते हैं कि आत्मा का स्वरूप इंश्वर से भिल्‍न नहीं _...... ठीक नहीं है क्योंकि स्वरूप अन्य का श्न्य नहीं हो सकता, हाँ, शुद्ध परे. ...... को भावना से लोक में यह तो कहा जाता हे कि मैं ओर श्राप एक ही हैं। _..... बही भाव यहां हे । [प ः




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