श्री राधा सप्तशती | Sri Radha Sptshti

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Sri Radha Sptshti by पं० वागीश शास्त्री - Pandit Vaageesh Shaastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द तुम हूँ सब सिलि करो श्रसंसा तब हों भरों गुसान । करों श्रनेक छा तेहि छिन हाँ रचों प्रपंच-बितान 0 स्पास सरल-चित ठगों दिवस निसि हों कि बिनिध विधान । घृूगू जीवन सेरो यह कलुचित घृग यह मिथ्या सान 11 इस प्रकार श्रीराघाजी श्रपनेंको सदा-सबंदा सर्वथा हीन-मलिन मानती हद अ्रपनेमें त्रुटि देखती हैं --परम सुन्दर युणसौन्दर्यनिधि क्यामसुन्दरकी प्रेयसी होनेंकी श्रयोग्यताका श्रनुभव करती है एवं पदपदपर तथा पल-पलसें प्रिपतमके प्रेमकी प्रशंसा तथा उनके भोलेपनपर दुख प्रकट करती हू । इयामयुन्दरके मथुरा पघार जानेपर वे एकबार कहती हैँ-- पड सद्गुणहीन रूप-सुषमासे रहित दोषकी में थीं खान । मोहविवता मोहनकों होता मुझमें सुन्दरताका भान ॥। न्यौदयावर रहते सुझपर स॒ंस्व स-मुद कर मुझको दान कहते थकते नहीं कभी-- प्राणेदर्वारि हुदयेश्वरि सतिसान ॥ प्रियतम छोड़ो इस ज्रमको तुम---बारबार में समझाती नहीं सामते उर सरते में कण्ठहार उनको पातों ॥। गुंण-सुन्दरतारहित ._ प्रेमघन-दीन . कला-चतुराई हींत । मुर्ा मुखरा सान-सद-भरी सिथ्या में सतिमंद सलीन ॥। रद ्र रद ्ट रहता श्रति संताप मुझे प्रियतसका देख बढ़ा ब्यामोह। देव सनाया करतों सें प्रभु हुरलें सत्वर उसका मोह ॥। श्रीराचाके गुण-सौन्दर्यसे नित्य मुग्ध प्रियतम र्यामसुन्दर यदि कभी प्रियतमा श्रीराघाके प्रेमकी तनिक भी प्रदयांसा करने लगते उनके प्रति अपनी प्रेम-कृ्तज्ञृताका एक शब्द भी उच्चारण कर बैठते श्रथवा उनके दिव्य प्रेमका पात्र बननेमें झपने सौभाग्य-सुखका तथिक-सा संकेत भी कर जाते तो श्रीराधाजी श्रत्यन्त संकोचमें पडकर सज्जाके मारे गड़-सी जातीं। एकबार उन्होंने क्यामसुन्दरसे रोते- रोहे कंहा-- तुमसे सदा लिया ही मेंने लेती लेती थकी नहीं 1 झभित अेम-सौभाग्य मिला पर में कुछ थी दे सकी नहीं ॥। मेरी त्रुटि मेरे दोषोंको तुमने देखा नहीं कभी । दिया सदा देते न थके तुम. दे डाला निज प्यार सभी ॥।




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