श्री शुकदेव जी का जीवन चरित्र | Sri Shukdevji Ka Jeewan Charitra

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Sri Shukdevji Ka Jeewan Charitra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प शकदेवज्ोका जीवनचरित्र आप किस निमित्त चिन्ता से भरे ब्याकल देख पंड़तेंहों सो हम ते कारण कहीं ॥ २९७ ॥ व्यास उदाच | अपन्रस्यगतिनास्तिनसखंमानसततः ॥ तबुथढ खतडचाहाचन्तयामपनपनः ॥ ९८ व्यासजी बोले न तो अपन्र की गति याने पर्हीन सनध्यकी पति नहीं होती और न मनमें कभी सख होता हे इसकारण से में दुगखी होकर बारबार चिन्ता करता हूं॥ २८.॥ . तपसातापयास्यद्यकदव बाउ्छताथदथू इतिचिन्तातुरोस्म्ययत्वामहंशरणंगतः ॥ २९ अब में अपना सनोरथ पूर्ण करनेवाले किस देवताकों तप करके सन्तु करूं इस चिन्तासे व्याकुछहूँ सो आपकी शरण प्रायाहूं ॥ २६. ॥ सवेज्ञोडसिमहूर्षत्व॑ कथयाशकृपानिधे । कंदेवंशरणयामि योमेपत्रंप्रदास्यति ॥ ३० ॥ हे कुपानिय महष तम सवेज्ञहों कहिये किस देवता की मैं घरण में जाऊं जो दमको प्रत्रप्रदान करे ॥ ३० ॥ संत उबाच इतिव्यासेनप्टस्त नारदोवेदविन्सनिः ॥ उचाचपरयापध्रात्या कृष्णप्रतिमहामनाः ॥ ३१ . सतजी बोले कि इसप्रकार व्यासजीके प्रछ्ने पर नारदमनि हू 2७ परमप्रसन्न होकर ब्यासजी से बोले ॥ ३१ ॥ नारद उवाच॑ | पाराशयमद्दाभाग यत्वेछच्ठसिमामिह ॥ तमेवारथपुराप्ट पिनामेसघुसुदुनः ॥ ३२




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