श्री ब्रह्मानंद मोक्ष गीता | Shri Brahmanand Moksha Geeta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.51 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(रद)
किंच जीविकाके छोभसें दूसरे धर्मको कदी
नहिं थ्रहण करना चहिये तथा द्व्यलाभके
लोभसें दुष्ट चीच पुरुपॉंका संग वा सहवाससी
नहि करना चहिये इति ॥ ३४ ॥
सतोष॑ परसास्थाय खधमेनिरतः खुधीः ।
कछुडवपोषणं छुयात् यथाकालं यथाक्रमम ३५
किंतु परमसंतोपमें स्थिर रहकरके बुद्धिमान
पुरुषको देश काल समयके अनुसार छुइंवका
पोषण करना चहिये इति ॥ इ५ ॥
. पितुः झुूषणं नित्य मातृशुश्रूषर्ण घुन४ ।
कयोदनन्य भावेन युरो। झु्भूषण तथा ३६
और सवे कुडुंबका पोषण करतेहये अपने
पिता माता तथा युरुकी विद्लोेष करके अनन्य-
चित्तसे भावभक्तिपूवक सेवा शुश्रूपा करनी 'चहिये
इति ॥ ३६ ॥
शुूषण हि दृद्धानां पर कल्याणकारणमस ।
ग्हीयादादिषस्तेषां नित्यमात्महिते रत। ३७
क्योंकि दुद्ध पुरुषोंकी सेवा शुश्रूषा .करनेसें
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