रात्रि भोजन | Ratri Bhojan

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Ratri Bhojan by इन्द्रलाल शास्त्री विद्यालंकार - Indralal Shastri Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रन मोजत करना त्िप्ाधरों का काम है । देवों पोर सामयों का महीं । न णतपव ब्राह्मण में देवों मानवों भौर परलोकबासी पिदुजमों का मोधन कास इस प्रकार सिखा है पूर्वाग्हो बे देवानां मध्य दिगो मनुष्याग्गां भ्रपराण्हः पिदणां भवत्‌--देवों का भोजनकाल पूर्वान्हू प्रात काल मनुष्यों का मोजत काल दोपहर तक भौर पिषजनों का तोसरे पहर वक्ष काल है । ममुष्य को बास्तब में एक बार ही सोजनम करना उचित है गा मदि शारी रिक सा्मससिक कमजोरी से दूसरी बार मी करना हो तो सूर्यास्त के पक्चाप्त तो करना ही मेहीं चाहिये क्योकि सुर्ास्त के बाद मोजन करना मिषाचर बनना है जो किसी को मी भ्रपंक्षित हीं भौर मे होगा हो चाहिये तो मी लोग राभि के समय। मोजन करते है यह भाइचर्य है ।- मानक होकर निसाघरीय कति करना सबया भनुचित शौर सानयता हल परे है। नर मजुवेद प्राह्लिक भदिक प्रत्प में सिखा है कि पूर्वान्दे युम्पते देवरमध्यात्दे अऋधिमिस्तवा । भपएष्दे थे पितूमित ामान्दे दैरप दासबे 11९४ पर्म--स्वर्गबासी बेबों का मोजन समय प्रातः काल है । कपि जन मम्माक् कास में सोजत करते हैं । पिदूजन भपरा्ट काम विन के तीसरे पहुर मोजम करत हूँ भौर राक्षस भौर देत्म जन रात के समय भोबन किया करठ है । यजुर्बेद भाह्लिक में कहा गया है किपदिम के समय भर्पात्‌ के प्रकास में चाहे सब मोजन कर सिया जाय परम्तु राति का समय सोजम का समय ही नहीं । वह तो प्रमोजन का समय है गा रा के समय जब कमी मोजन किया है लो देर्य दानवों ने ही बबों प्रौर मानों ते पी फ्म ४ ५




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