विश्व धर्म | Vishva Dharm

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Vishva Dharm by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे धर्म की व्याख्या अपने कर्तव्य का पालन ही घर्म है। धर्म कर्तव्य पथ पर चलने से स्वयं बैन जाता है। घर्म बनाया नही जाता। धर्म तो मानव का मा ग्रपनाने से बनता है। धर्म, सनातन (एक समान ) रहने वाला है। वह न बदलने, न बंटने वाली वस्तु है । संसार में धर्मा- त्मा वही है जो धर्म के लक्षणों से युक्त है । धर्म वेप- भूपा बनाने से या रंगीन वस्त्रों को घारण करने से भी नहीं बनता । ग एक हिन्द जाति को ही ले लीजिये जिसमें से भ्रनेक पंथ धर्म के बन गये हैं जिसके कारण मति ही भ्रमित हो रही है। यही समभ में ग्राना मुश्किल हो गया है कि हमारा वास्तविक धर्म-पथ, जीवन का मार्ग क्या है । एक ही जाति के इतने धर्म हो सकते है यह एक अ्चम्में की वात वन गई है ! इससे यूह प्रतीत ह्वो रहा है कि एक ही मानव जाति के श्रलग- अलग भगवान हैं । सज्जन्नो ! विचार करो श्रौर अपने को ग प से वचाओओ । भगवान तो कतेंव्य पथ पर चलकर मिलता है न कि किसी जाति या समाज में जाकर मिल सकेगा । ्रापकां कर्तव्य ही आपकों ईदचरीय मार्ग पर ले जायेगा ।




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