कषाय मुक्ति | Kashya Mukti
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.35 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“सोमिल मेरा शत्रु नहीं, सहायक है, उपकारी है। वह आज मेरी कर्म
निर्जरा में सहायक बना है। आज नहीं तो कभी-न-कभी तो इस कार्य के
फल को मुझें भोगना ही पड़ता। यह अच्छा हुआ कि आज मेरी सद्बुद्धि
की अवस्था में, समता भावना की स्थिति में, इस कर्म-फल को समता भाव
से भोगने का शुभ अवसर सोमिल ने मुझे दिया है। मैं उसका कृतज्ञ हूँ।
आज मेरे कर्म-रोग की चिकित्सा हो रही है। कर्मों की निर्जरा हो रही है,
आत्मा की शुद्धि हो रही है और संभवत: मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है।
सोमिल ने मेरा अहित नहीं कियां है, मेरा हित ही किया है। अहित तो
उसने अपना ही किया है। उसने मेरे निमित्त से भारी कर्मों का बंध किया
है, जिसका दंड भोगना उसके लिए बहुत कठिन होगा। परमात्मा उसे
सद्बुद्धि दे, सुमति दे, सम्यक् ज्ञान दे और इस कर्म के फल को समता
पूर्वक भोगने की शक्ति दे |”
कुछ लोग अपने दुःख में निमित्त बनने वाले को अपना शत्रु मानकर
उससे बदला लेते हैं और कुछ लोग उसे क्षमा भी कर देते हैं किन्तु क्या
कोई किसी को क्षमा प्रदान कर सकता है ? क्या पीड़ित के द्वारा क्षमा प्रदान
किये जाने से पीड़क उस पाप के फल-भोग से छूट जाता है ? यदि ऐसा
होता हो तो मैं एक बार नहीं, किन्तु हजार बार सोमिल को क्षमा प्रदान
करता हूँ। मेरी ओर से वह पाप और पाप के दंड से मुक्त बने |
अपराधी सोमिल नहीं है। अपराधी तो मैं हूँ । मैंने पूर्व में भी पाप किया
और निमित्त बनकर सोमिल के विचारों को विकृत एवं दूषित बनाकर उसमें
बदला लेने की भावना उत्पन्न की और आज भी उसके लिए नवीन भयंकर
कर्म बंध का निमित्त बना | क्षमा मुझे मौँगनी चाहिए। वह तो आज मेरा
उपकारी बना है| कर्म निर्जरा में सहायक बना है। मित्र सोमिल ! मेरे
अपराध के लिए मैं क्षमा की भीख मांगता हैं।
मेरे सिर पर जो रखे गये हैं वे अंगारे नहीं हैं। वे तो मेरे कर्म रोग
काटने की गोलियाँ हैं| मेरे रोग को मिटाने की अचूक दवा है। मुझे इस
दवा को समतापूर्वक पीना है। दवा तो दवा ही होती है । वह कभी मीठी और
कभी कड़वी भी हो सकती है | ज्ञानी ऐसी दवा को ही कर्म-रोग काटने की
दवा मानते हैं । उसका आनन्दपूर्वक सेवन करते हैं। वे चिकित्सक को शत्रु
नहीं किन्तु अपना मित्र और एवं उपकारी मानते हैं। आज मैं इस दवा को
पीकर रोग मुक्त बन सकूंगा। यह अमृत है, इसे पीकर अमर बन सकूंगा |
भगवान नेमिनाथ ने मुझ पर असीम कृपा की है। उन्होंने मुझे मेरे
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