विजय के सूत्रधार | Vijay Ke Sutradhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.47 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हूँ। भाप उन्हैं पार्थिव पयुहरर था तानाशाह सम के की भूल क्रय वे आपके परिवार के एक सदस्य हैं । वे किसी वर्ग-विदोष के वरन् समस्त राष्ट्र की निधि हैं। उनके मुख से आप हम भौर सब समस्त समाज और राष्ट्र की बोली सुनते हैं । यही कारण है कि उनकी बोली को सभी मस्त्रमुग्ध होकर सुनते हैं। वे वाणी और कमें के जादूंगर हैं । समाज के किसी विशेष वर्ग के वे प्रतिनिधि हों ऐसी वात भी नहीं है । वे समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं समस्त राष्ट्र के प्रति- निधि हैं। उन्होंने कभी भी विद्रोह का कर्कश-बियुल नहीं फूंका वरन् सदा शास्ति-पाठ किया है । वे शान्तिद्ूत हैं । उन्होंने उपनिपद् की वाणी को सत्य किया है-- अहमारिमि प्रथमथा ऋतास्य । पूर्व देवोभ्पोध्मुतस्थ ना चापि ॥ अर्थात् मैं ज्योतिमंय देवताओं की अपेक्षा भी प्राचीन हुं । में सत्ता की प्रथम सन्तान हूं में अमरत्व शोणितवाही शिरा-उपदिरा हूं । भारत की पुण्य-भुमि में जन्मे अगणित तेजस्वी महापुरुपों के प्रति भारतीय ही नह्दीं पाइद तय भी श्रद्धा रखते हैं। वह चाहे जाजें बर्नार्ड था हों या मंक्समूलर हों रोमां रोलां हों या रशेल हों सब भारतीय महा- पुरुषों के प्रति अपनी श्रद्धा अपित करते हुए नतमस्तक हैं । हमारे. वेद उपनिपद इतिहास पुराण सभी शास्त्रों में स्थान-स्थान पर महापुरुषों की महिमा का गान है । वास्तव में महात्माओं की अथवा वेभव-संपन्न शक्ति-संपन्त सांसारिक लोगों की जो भी महिमा हमें देखने या सुनने को मिलती है वह सब भगवान की ही महिमा है और ऐसे लोगों का दर्शन करनां ही हमारा पुण्योदय है। ऐसे महापुरुषों का संग मिलना बड़ा ही कठिन है। तुलसीदास के अनुसार-- विनु हि छपा मिलहिं नह संता । भगवान् कृष्ण ने भी महापुरुपों का अनुकरण और भनु- . सरण दोनों करने को कहा है-- ययदाचरति श्रेष्ठस्तसदेवेतरो जनः । स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदन्वर्तते ॥ गीता ३1२१
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