जीव और कर्म विचार | Jeev Our Karm Vichar

Book Image : जीव और कर्म विचार  - Jeev Our Karm Vichar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शुक्ला ज्ञानसागर - Shukla Gyansagar

Add Infomation AboutShukla Gyansagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
:. जीव और फम-बिचार। ... , [१५ कल पंमॉपाधि दूर दोने पर अशुद्ध जीवद्दी शुद्ध दोश्र पूर्ण छानी निराछुल-परमशान्त-परममानंद मय भर पूर्ण खतंत्र-झतछृत्य दोजातेई। फर्मोपाधिस नपीन नवीन क्मयंघका अंकुर उत्पन्न दोता दो रहता दै। फर्मॉपाधि दूर दोजाने पर नवीन कर्मोकें अंकुरकी उत्पसि नर दो जाती है । जिस प्रकार चावलके धान्य परे रुप छिलका दूर फर देने पर नष्र दो जाती है । छिलका सदिन धघान्य निरन्तर मंकुष्ति टोतादी है शरोरके छर ज्ञानेसे कर्मों नहीं छटती है, यद स्थूल शरीर अनंत्वार छोड़ा | परन्तु कर्माकी सत्ता आत्मा पर पूर्ण दोनेसे संसारफे जन्म-मरणक्ा अंत नह्दीं ोता है। कर्माकी प्रचलतासे एक शरीर छूटने पर दूसरा शरीर धारण करना पड़ता हू | दूसरा छुटने पर तीसरा, तीसरा छुटने पर चांथा शरीर धारण करना पढ़ती हैं, इस प्रकार जवबतक फर्मोंका भात्माके साथ संबंध दूं तदतक निरृतर एक शरीरकों छोड़ना भार दूसरे नवीन शरीरकों धारण करना यह व्यापार अशुद्ध जीचके साथ निरंतर लगा दी है । इसीकों संतति कहते हैं, जन्म-मरणका चक्र कदते हूं, संसार कददते हैं | जोवमें कर्मोका संवंध सवंधा नष्ट दो गया दे इसलिये जन्म-मरणका चक्र स्ेधा नट्ट दो गया हैं । शुद्ध जीव जन्म-मरण फी रदित हैं । एफ शरीर छूटने पर दूसरे शरीरकों धारण करनेके; लिये




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now