तिब्बत में तीन वर्ष | Tibbat Men Tiina Varshh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31.25 MB
कुल पष्ठ :
539
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ है। तिव्बतमें अंगरेजोंकि प्रचेशके साथ अंगरेजी का. भी प्रवेश होने
लगा है । तिब्बतियोंकी आांखें कब तक बन्द रहेगी ?
काघागुचीने जिस समय तिब्बतमी परराष्ट्रनीतिके -
न्घर्में अपने विद्यार प्रगट किये थे उस समयसे संसारकी, ओर
उसके साथ तिब्बतकी, बातें बहुत कुछ बदल गयी हैं। पर
इससे उनकी पुस्तकके महत्त्वमें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता ।
कई अंशॉ्म'ं तो बादकी घटनायें* वैसी ही हुई हैं जैसी उन्होंने
भविष्युद्वाणो की थी |. तिव्यत-पय्य टक कई हुए हैं, पएकसे
पक साहसी और मभोगोलिकतत्वान्वेषक, पर. कावागुन्नीके
समान तिब्बतीय जीवनका मम्म कोइ नहीं जान सका । एक
तो चह स्वयं बौद्ध और मगो ठीय सभ्यताके अनुयायों, दूसरे,
उन्होंने तिब्बतमें तीन व्षे बताये । पुस्तकका नाम ही पुस्तककी
उपादेयताका सबसे बड़ा प्रमाण है। काचा गुची की 'घर्मे पराय णता,
सत्सादइस और सरखता-पर सबसे अधिक उनकी प्रशान्त मुख-
च्छघि-इस समय भी भूले नददीं ूलती । इस यात्राकें बाद
कई बरस उन्होंने संस्छुतके अध्ययनम काशीमें बिताये । अंगरेजी
नाथ मात्रकों ज्ञानते थे। अपना भ्रमण चृत्तान्त पहले उन्होंने
जापानी भाषामें लिखा था ।. बड़े भावुक और कवि थे। देश-
प्रेस तो उनकी नसनसमें भरा था ।. अपने देशके परडापुज़ा-
श्यिोंको ओर सदाके लिये अंगरेजी! सा हित्यको शिक्षाकी अनिवा-
य्यताब्दा द्रोल पीटनेवालोंको कुछ लज्ित होना चाहिये-अपना
दठ और दुराग्रह छोड़ना चाहिये। कावागुची बौद्ध पुजारी
User Reviews
Khushboo
at 2019-06-06 07:39:13"Fantastic writing "