भारत में बाइबिल भाग २ | Bhaarat Men Baibil Bhag 2

Bhaarat Men Baibil Bhag 2 by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत में वाइविल ३४७ प्र्य श्रह्मा की एक पूरी रात सक रहता है श्रौर वह रात भी मनुष्यों के उतने ही वर्षों के बराबर होती है जितने के बरावर ब्रक्मा का एक दिन । त्वोकों के विनाश तथा पुननिर्माण पर पवित्र पुस्तकों के सिद्धांतों ने झनेक दार्शनिक पद्धतियों को जन्म दिया है पर इस समय इनके ्रध्ययन के लिये न हमारे पास श्वकाश है श्रौर न रुचि ही। इस उनदो सिद्धांतों का वर्णन करना ही पर्याप्त समकते हैं जिनके कारण इस विषय पर भारत के घर्म-पंडितां का सदा मतमेद रहा है । एक सिद्धांत ता यह कहता है कि प्रकृतिरूपी बाज को जब बडा एक बार उबर बना देना है लब फिर रूपांतर का कार्य परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने के बिना ही उसके बनाए हुए सनातन और अधिकायं नियमों के अनुसार अपने-श्राप होता रहता है । प्रकृति श्वपने केंद्र से श्रपनी उत्पादिका नाभि से गिरकर श्रंतरिच में छाटे-छाटे भागों में विभक्त श्रौर श्राकृष्ट हो जाती हैं सारे कण दबकर मिच जाते हैं प्रकाश उम्पन्न होता हैं सबसे छोटे खंड सूख जाते हैं बाहर निकलनेवाली भापों से वायु श्रौर जलन बनता है । ये खंड वासयाग्य लोक बन जाते हैं । न क्रमश शेष सार कण भी झपने परिणाम के अनुसार अपनी अपनी बारी से बुक जाते ई परंतु जितना-जितना वे वासयोग्य बनते जाते है उतना-उतना ही उनका ताप श्र अकाश घटता जाता है यहां तक कि वे सबेधा अंतद्धांन हो जाते हैं--जीवन श्र पुनरुस्पत्ति की भअत्यंत सकमक शक्तियों से वंचित होकर प्रकृति फिर भरूत-प्रक्य में ब्रह्मा की रात में जा गिरती है । यह मत वेद के विरुद्ध नहीं फिर भी नेष्टिक ब्लोग इस पर आपत्ति करते श्र दिव्य प्रभाव का अधिक कार्य ठहराते हैं। वे पूर्णरूप से इस वात को स्वीकार करते हैं कि इस प्रकार प्रकृति




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