बिहारी सतसई | Bihari Satsai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.76 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_........... जीवनचारत्र। (१७)
के निमित्त झगड़ा किया, इससमय प्रजाको बड़ी कठिनाई
पड़ी थी कदाचित इसीसमय कविवरने यह दोहा कहाहे !
'दादढा-दसह डुराज प्रजानका, क्याबा टू दुखद्वद ।
अंधघिक अँधेरोजगकरं,मिठिमावसरविचद॥
फिर राज्यकी पढटसे गुणगाहक न रहनेके कारण कवि
वरने वहां रहना उचित न जाना कदाचित ऐसेहीं प्रसंगपर
नीचे छिखा काव्य कियाही |
' दोहा-चढेजाहु द्यां को करत:हाथिनकोव्यवहार।
नाई जानत द्या वसत आर कुम्द्ार
जिन दिन देखे वे कसम, ग सुधीत बहार।
अब आज रद्दागुलावकाननपटद:टालाइार
कहते हैं कि, यही विचार कविवर वहांसे कप्णकविकी
' साथले मारवाइकी और चढेगये, उससमय टरवारमे इनके
. दोहोका अथे होता था,विद्वानोंने कइ२ घरकारस अर्थ किये थे
' विहारीठाठने देखा कि,अपना परिचय अब देना सैक नहीं
कारण कि; इससे अधिक और जय अप दम क्या करेगे
_ मारवाइके विपयमें उन्होंने कहा है 1
. दोहा-विपमद्पादिककीलपा,जियमतीारनिशोाधि
अमितअपारअगाधजल, :पयाधि
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