बिहारी सतसई | Bihari Satsai

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Bihari Satsai by बिहारीलाल - Biharilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_........... जीवनचारत्र। (१७) के निमित्त झगड़ा किया, इससमय प्रजाको बड़ी कठिनाई पड़ी थी कदाचित इसीसमय कविवरने यह दोहा कहाहे ! 'दादढा-दसह डुराज प्रजानका, क्याबा टू दुखद्वद । अंधघिक अँधेरोजगकरं,मिठिमावसरविचद॥ फिर राज्यकी पढटसे गुणगाहक न रहनेके कारण कवि वरने वहां रहना उचित न जाना कदाचित ऐसेहीं प्रसंगपर नीचे छिखा काव्य कियाही | ' दोहा-चढेजाहु द्यां को करत:हाथिनकोव्यवहार। नाई जानत द्या वसत आर कुम्द्ार जिन दिन देखे वे कसम, ग सुधीत बहार। अब आज रद्दागुलावकाननपटद:टालाइार कहते हैं कि, यही विचार कविवर वहांसे कप्णकविकी ' साथले मारवाइकी और चढेगये, उससमय टरवारमे इनके . दोहोका अथे होता था,विद्वानोंने कइ२ घरकारस अर्थ किये थे ' विहारीठाठने देखा कि,अपना परिचय अब देना सैक नहीं कारण कि; इससे अधिक और जय अप दम क्या करेगे _ मारवाइके विपयमें उन्होंने कहा है 1 . दोहा-विपमद्पादिककीलपा,जियमतीारनिशोाधि अमितअपारअगाधजल, :पयाधि




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