वीर सतसई | Veer Satsai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.32 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बनाता, उसका सहायक उसका 'हाथद् का बढ' होता है जिसके सहारे वह नि्य
घमता है। सिंह के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है उसका स्वातन्त्रय-भाव । वह
किसी के बन्धन को स्वीकार नहीं कर सकता । जो बन्धन को स्वीकार कर लेता
है उसका भौत्तिक मूल्य चाहे कितना ही बढ़ जाय पर उसकी आत्मा की तेजस्विता
नष्ट हो जाती है। हाथी के गले में लोग बन्धन डालकर अपनी इंच्छानुसार उसे
चला लेते हैं, इसीलिए वह एक लाख रुपयों में बिकता है, यदि सिंह भी अपने गले
में बन्धन स्वीकार कर ले तो वह एक वक्त दस लाख रुपयों में बिकने लग जाय ।'
पर यह असम्भव है । वीर पुरुष किसी की अधीनता स्वीकार कर ही नहीं सकता ।
सुअर के बहाने वीर योद्धा की दुदमनीयता, भीषण प्रहार-शक्ति और नेतृत्व-
गरिमा का चित्र अंकित किया गया है। सूअर का राजस्थानी वीर साहित्य में
विशेष महत्त्व है । यहाँ के राज॑घ्रानों में सूअर का शिकार करना अधिक प्रिय और
दुष्कर माना जाता रहा है। उसकी डाढ़ें मजबूत होती हैं । वह निर्भीक होकर
गोलियों की बौछार सहन करता हुआ भी सीधा चलता रहता है। यद्यपि हिरण
के लम्बे सींग होते हैं पर उसका स्वभाव भागने का होता है, जबकि सूअर छोटी
दाँती वाला होकर भी शत्र-समूह को घायल कर देता है ।*
धवल अर्थात् बैल सन्त काव्य में अकमंण्यता का प्रतीक बनकर आया है पर
वीर काव्य में उसके बहाने वीर सेवक की कुल-मर्यादा की रक्षा का भार वहन
करने की शक्ति एवं स्वामिभक्ति का बखान किया गया है।*
नाग के बहाने वीर योद्धा की प्रतिशोध एवं क्रोध-भावना को व्यक्त किय।
गया है। नाग को छेड़ते ही वह पीछे पड़ जाता है और छेड़ने वाले का प्राण लेकर
ही रहता है ।
१--गइवर-गठछई गठछात्थियउ, जहूं खंचइ तह जाइ।
सीह गढठत्थण जइ सह, तउ दह लक्खि विकाइ
-अचलदास खीची री वचनिका
र२--हिरणां लाँबी सींगड़ी, भाजण तणौ. सभाव।
सूरां छोटी. दाँतली, दे घण थट्टां घाव ॥--हालाँ झालाँ रा कुंडलिया
३--सींगाठो अवखल्लणौ, जिण कुछ हेक न थाय।
जास पुराणी ब्राड़ जिम, जिण जिण मत्थे पाय ॥।
-उहा० झा० री कुंडलिया
४--बांबी भीतर पौढ़ियो, काछो दबक काय ?
पूंगी ऊपर पाधरो, आवे भोग उठाय ॥
मिश्रण : वीर सतसई
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