समाधि तंत्र | Samadhi Tantra
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
आचार्य जुगल किशोर जैन 'मुख़्तार' - Acharya Jugal Kishor Jain 'Mukhtar',
आचार्य परमानन्दन शास्त्री - Aachary Parmanandan Shastri
आचार्य परमानन्दन शास्त्री - Aachary Parmanandan Shastri
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.38 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य जुगल किशोर जैन 'मुख़्तार' - Acharya Jugal Kishor Jain 'Mukhtar'
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
आचार्य परमानन्दन शास्त्री - Aachary Parmanandan Shastri
No Information available about आचार्य परमानन्दन शास्त्री - Aachary Parmanandan Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ३ है| हर हर जिनचन्द्रके जैनन्द्र व्या कर ण-विषयक ज्ञानकों स्वयं शान _ हैं श्रौर इस तरह जैमेन्द्र व्याकरणकें श्भ्यासमें उसकी दश्नताकों सौकिस- क्रिया. हैं . ... पृज्यपारक इस व्याकर णशास्त्रकी प्रशंसा में थवा इस व्याकरणकों छेत्रर पृज्यपाद 1 प्रशंसामें विद्वानोंके ढेर्के ढेर वाक्य पाये जाते हैं । नमूनेके तौर पर यहाँ उनमेंस दो-चार वाक्य उद्धत किये जाते हैं कवीनां कितरां तत्र वण्येते । विदुषां वाडमलध्वंसि तीथे यस्य बचोमयम् ॥ -श्यादिपुराण जिनसनः 1 अचिन्त्यमहिमा देव सोघभिवंद्यो हितेथिणा । शब्दारच येन सिद्धयन्ति साधुत्व प्रतिलम्सिता । -पाश्वनाथचरिते बादिराज । पूज्यपा दुः सदा पूज्यपाद पूज्य घुनातु माम् । ब्याकरणाणवों येन तीर्णों विस्तीणशसदयुणः ॥ -पागडवपु राण । शब्दान्धीन्दु प्रूज्यपाद च वन्दे । -ानियमसारटो कार्यों पद्यप्रभः । प्रमाण मकलंकस्प प्ूज्यपादस्पय लक्णम । द्विसंघान कबे काव्य ॥ --नाममालायां | नमः श्रीपूज्यपादाय लक्षण य दु पक्रमम् । यदेवात्र तदन्पत्र यन्नाचास्ति न तस्क्वचित ॥ -जेसन्द्रप्र क्रियायां गुणनन्दी । झअपाकुवन्ति यद्ाचः कायवाकचितससं भवम् । कलंकर्मगनां सोघ्य॑ देवनन्दी नमस्यत ॥ --ज्ञानागंवे झुभचन्द्र । इनमेंसे प्रथमके दो वाक्यों में पृज्यपादका देव नामसे उल्लेख किया. गया है जो कि आपके देवनन्दी नामका संक्षिप्त रूप हैं । पहले वाक्यमें श्र जिनसे नाचाय लिखते हैं कि जिनका वाइ मय--शब्दशास्त्रूपी व्याकरणती थ--विद्वजजनोंकें वच न- मलकों नष्ट कर नवाला है वे देवनंदी कवियोंकें तीथछूर हैं उनकें विपयमें अधिक क्या कहा जाय ? दूसर बाक्यमें वादिराजसूरिन बतलाया है कि जिनकें द्वारा--चिनके व्याकरणशास्त्र को छकर--शब्द भले प्रकार सिद्ध होते हैं वे देवनंदी श्रचित्य महिमायुक्त देव हैं श्रौर अपना हित हू मचालोंक़े ट्रार सदा बंदना किये ज़ाने के याग्य हैं । तीसरे वाक्यमें झुभचन्द्र अैटारकन पूज्य्ाहको पूजयोंके द्वारा भी पृज्यपाद तथा विस्दृत सदूरुणोंके धारक प्रकट कहते छुपू उन्हें झयाकरण-समुद्रको तिरजानेवाले लिखा है साथ ही यह प्रार्थप्ता की दै कि वे पवित्र करें | कै
User Reviews
No Reviews | Add Yours...