राजपूताने का इतिहास भाग 1 | Rajputane ka Itihas Part-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| इसके आगे राव सीदा से लेकर सदासाजा जसचन्तसिंद ( प्रथम ) तक का बिस्दृत इतिहास है । राटोड़ों से पूर्व यहां जिन-जिन जातियों का प्राघान्य रहा उनका संचित्त परिचय तथा राव सीदा से पूबे के भारतवर्ष के विभागों के राठोड़ों का जो कुछ इतिहास शोध से ज्ञात हो सका घदद संदोप में प्रारम्भ में दिया गया है । कन्नौज के गाइड्वालों झौर जोधपुर के राटोड़ों के बिषय में कुछ लोगों का मत दे कि ये दोनों भिन्न बंश न दोकर एक ही हैं। इस खान्तिमूलक धारणा का कारण यद्दी प्रतीत दोता दै कि ऐसा साननेवालों ने कन्नोज के चन्द्रदेव तथा बदायूं के चन्द्र को पक दी मान लिया है । चस्तुतः ये दोनों मिन्न व्यक्ति थे श्रौर झल्लग-झलग समय में हुए शे । इस प्रश्त का सविस्तर विवेचन दमने “राठोड़ श्रौर गाइड्वाल” शीर्षक ध्याय में किया है, जिससे श्राशा दे कि इस विषय पर समुचित प्रकाश पड़ेगा । यह इतिहास सर्वागपूसा है, यह कददने का मैं साइस नहीं कर सकता, पर इसमें झाघुनिक शोध को पूरा-पूरा स्थान देने का भरसक किया गया है । जिन व्यक्तियों शादि के नाम प्रसंगवशात्‌ इतिदास में जाये, उनका--जहाँ तक पता लगा-श्रावश्यकताजुसार कही संक्षेप में झौर कीं विस्तार से परिचय ( टिप्पणु में ) दे दिया गया हैं । मेरा विश्वास है कि इसके द्वारा जोधपुर राज्य का प्राचीन गौरव प्रकाश में शायगा ज्और यहां का वास्तविक इतिहास पाठकों को ज्ञात होगा। भूल मजुष्यमात्र से होती है श्रौर मैं भी इस नियम का शापवाद नददीं हूं । फिर इस समय मेरी बुद्धाचस्था हे और नेत्रों की शक्ति भी पहले जैसी नददीं रही दे, जिससे, संभव दे, कुछ स्थलों पर चुटियां रद्द गई हों । झाशा है, उदार पाठक उनके लिए, सुझे चामा करेगे शऔर जो उनकी दृष्टि में झावें उन्हें सूचित करेंगे, जिससे दुसरे संस्करण में उचित सुधार किया जा सके । मैं उन प्रन्थकतीओं का, जिसके ग्रन्थों से इस पुस्तक के लिखते में सु सददायता मिली दे, झत्यन्त अनुयूद्दीत हूं । उनके नाम यथामसंग




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