बौध्द दर्शन | Bauddh Darshan

Boddh Darshan by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| न श्ात्साकों नित्य मे सानना मे गौतम दूद्ध € रहता है--इमसे समकतेमे नहीं होगी । लेकिन बुद्की शिक्षाकि श्रमुसार यह सिलसिला जन्मस पहने भी था, श्रौर मृत्युके वाद भी रहेगा । झपने पिछले श्रनुभवोसे बने हुए मनकी उपया, मृन्यु-न्षणमें जिस चक्‍त वहू इस घरीरकों छोडनेके लिए तैयार रहता है, उस तप्त लौह-घारसे दी जा सकती हैं, जो एक ऐसी नालीके सहारे नीचे बहती चली भाई हो, जी एक टीलेके पास श्राकर रुक जाती हो । उस टीलेंके दुसरी श्रोर एक ऐसी दूसरी नाली हैं, जिसके श्रारम्भपर चुम्बक-राधि हैँ, तो वह जरूर इस घारकी नालीमे डालनेके लिए सर्वत्र होगी । इसी प्रकार मृत्यके समय चित्र-प्रवाह श्रपनी सस्कार-राधिके साथ इस जीवनके छंन्पर खड़ी रहती है । वह सस्कार-राणिस्पी चुम्वक समान धर्मवाले समीप- तम गरीरमें खीचकर फिर उसकी वही पुरानी कार्रवाई शुरू करा देता है । यह क्रम तव तक जारी रहता है, जव तक तृप्याकें सबने यह सन्तनि विश्वखलित हो, निर्वाणकों नहीं प्राप्त हो जाती । इस प्रकार काम, कर्म- फल झौर जन्मान्तर होता हूँ । जीयको नित्य माननेमें वहुतसे दोप होते है । यदि श्राप उसे नित्य मानते हे, तो उसे सिर्फ श्रमर ही नहीं, ्रजन्मा भी मानना होगा । फिर सामीप धर्मोमे भी तो, जहाँ पुनर्जन्म नहीं मानते, यह सानना होगा कि जीव अरब-खरव वर्ष नहीं बल्कि श्रनादि कालसे झ्राज तक चुपचाप पडा रहा ! अब एक, पचास, या सी वर्ष तकके लिए, बिना किसी पूर्व कर्मकें, इस दुनियामे जन्मात्व या जन्मरोगी या स्वन्व, मन्दवुद्धि या प्रतिभाणाली वन कर उत्पन्न हो गया है, श्रौर मरनेके वाद फिर अनन्तकाल तकके लिए भ्रपने कुछ वर्षोके वुरें-मले कर्मोके कारण स्वर्ग या नरकमें डाल दिया जायगा । कया इम तरहकी नित्यता वुद्धि- युक्त मानी जा सकती है ? जो लोग पू्र्जन्म भी मानते है, श्र साय- साथ झात्माकों नित्य भी, उनकी ये दोनो बाते परस्पर विरोधी हू । जब वह नित्य हैँ, तो कूटस्थ भी है, भ्र्थात्‌ सदा एक-रस रहेगा, फिर ऐंसी है




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