कल्याण श्रीभगवत कृपा अंक | Kalyan Sribhagvatkripa Ank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ आर्तत्राणपरायणनारायणाएरादशकस्तोत्र २? विन तय विदा गा रस लक अप पापा पित्ना भक्तोत्तां यो घुवं दृप्टा माजावमानं गतम्‌ । दर णागतं तु तपस। देमाद्िसि सन द्यार्त्राणपरायणः स भगवान नारायगों में गतिः ॥ ७ अपने भ्राता उत्तमको पिताद्वारा अपनी गोदरें बेठाया हुआ देखकर ध्रुवने भी उसीके समान प्रसन्न होकर गो। चढ़नेकी इच्छा की किंतु विमाता सुरुचिने उन्हें तिरस्कारपूर्वक झिड़क दिया तत्र घ्रुच तपस्या करके भगवानके दारणाः हुए । इसके फलस्वरूप भक्तश्रेष्ठ घुवको जिन्होंने स्गसिंदासन प्रदान किया वे आतंजनर्रक भगवान्‌ नारार मेरी गति हैं । _ नाथेति श्रुतयों न तरवमतयों घोषस्थिता गोपिका जारिण्यः कुलजातिधमंविमुख्वा अध्यात्मभावं ययुः। भक्तिय॑स्थ ददाति मुक्तिमतुलां जारस्य यः स भगवान्‌ नारायणों मे गतिः ॥ ८ ब्रजके घोषोंगें रहनेवाली गोपिकाएँ न तो श्रुतिंकी जानकार थीं न उन्हें तच्वका ही ज्ञान था अपितु वे कुल अं जातिके धर्मसे विसुख जारिणी थीं फिर भी भगवद्गतमानसा होनेके कारण वे अध्यात्ममावकों प्राप्त हुई । इस प्रव जिनकी भक्ति अतुलनीय मोक्ष प्रदान करती है तथा जो जारकी भी सद्गति हैं वे आर्तजनरक्षक भगवान्‌ नाराय मेरी गति हैं | शुतुष्णार्तसहस्त्रशिष्यसहित डुबौससं क्षोभितं द्ौपया भयभक्तियुक्तमनसा शाकं सहस्तार्पितम्‌ । भुक्त्वातपंयदात्मबूत्तिमखिलाम वेद्यन_ यः पुमानातंज्राणपरायणः स भगवान्‌ नारायणो में गतिः ॥ ९ जिन महापुरुषने द्रौपदीद्वारा मय और भक्तियुक्त मनसे अपने हाथसे दिये गये शाक-पत्रका भोग लगाकर अखिं आत्मबृत्तिको प्रदर्शित करते हुए. भूख और प्याससे व्याकुल अपने सहस्र शिष्योंसहित क्षुव्ध दुर्वासाको तृ्त कर दिय वे आतंजनरक्षक भगवान्‌ नारायण मेरी गति हैं । येनारक्षि रघूत्तमेन जलघेस्तीरे दशास्यानुजस्त्वायात॑ शरणं रघूत्तम विभो रक्षातुरं सामिति । की #+ दि. पौलस्त्येन निराकतो थ सद्सि च लड्ठापुरे ह्ार्तज्ञाणपरायणः स भगवान्‌ नारायणों मे गतिः ॥ श्० दशाननका छोटा भाई विभीषण लंकापुरीमें अपने ज्येष्ठ श्राता पुलस्त्यनन्दन रावणद्वारा राजसभामें तिरस्कृत होव समुद्रतय्पर आया और स्वेव्यापक रघुश्नेष्ठ श्रीराम मुझ डुग्लाठुर शरणागतकी रक्षा कीजिये पुकार की त जिन रघुवंशकिरोमणिने उसकी रक्षा की वे आतंजनरक्षक भगवान्‌ नारायण मेरी गति हैं । येनावाहि. महाहवे वखुमती संचतंकाले महाठीलाक्रोडवपुर्घरेण हरिणा नारायणेन स्वयमू । बन १ #+ 4७. यः पापिद्ठुमसम्प्रवतमचिराद्धत्वा च योगात्‌ पियामार्तत्राणपरायणः स भगवान्‌ नारायणों से गति ॥. शश प्रलयकाठमें ढीठामय मद्दान्‌ सूकरका रूप घारण करनेवाठे जो नारायण श्रीहरि स्वयं अपनी प्रिया प्रृथ्वीको धार करनेके कारण सम्मुख उपस्थित कण्टकबक्षसद्रा दिरिण्याक्षको उस महासमरमें शीघ ही मारकर प्रथ्वीको अपने दंद्राअप कह न घारण किये हुए जखके ऊपर आये वे आतजनरक्वक भगवान्‌ नारायण मेरी गति हैं । योद्धासी भुवन्ये मघुपतिभता नराणां बले राधाया अकरोदते रतिमन्पूर्ति खुरेन्दाचुजः । . _ यो वा रक्षति दीनपाण्डुतन यान्नाथेति थीति गतानातैत्राणपरायणः स भगवान्‌ नारायणों से गतिः ॥-१५ जो बलमें त्रिलोकी्म स्वप्रधान योद्धा मधु-वंशके स्वामी मनुष्योंका भरण-पोषण करनेवाले और देवर इन्द्र अनुज उपेन्द्र हैं जिन्होंने सुसतकाठ्में राधाकी रतिविषयिणी कामनाकी पूर्ति की है जो दीन-हीन पाण्डुपुत्रों व्दे नाथ | रक्षा कीजिये ? इस प्रकार कहनेवाले भयमीत जनोंके रक्षक हैं वे आतंजनरक्षक भगवान्‌ नाराय मेरी गति हैं ।




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