वैराग्यशतक | Vairagya Shatak

Vairagya Shatak by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0. 5) भा हू! महाराजा भतेहारि दर सु २ शब्द बूहते हैं, कोई दो हज़ार वष पहले, राजपूतानेके मालवा दर क उज्ञयिनी नगरीमें,--जिसे आजकल उज्जेन अप हैं, एक उच्च श्रेणीके विद्वान ,नीतिकुशल,न्याय- _. परायण, प्रजावत्सल, सब्वंणुणसम्पन्न नपति राज करते थे । पर का शुभ नाम महददाराज मत हरि था । आप अपनी प्रजाकों निज सन्तानसे भी अधिक चाहते थे ओर उसीकी हितचिन्तनामें दिन- रात मशयूल रहते थे । आपकी न्यायप्रियता और प्रजाहितेषणा .. की चर्चा सारे भारतमें फेल गई थी, इसलिये अन्य राज्योंकी बहु संख्यक प्रजा भी अपना देश छोड़कर आपके राज्यमें आ कर बर गई थी, इससे उज्जयिनीकी शोभा-समुद्धि आजकलके कलब़त्तें बस्वईके समान होगई थी । राजाके घर्मपरायण होनेके कार




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