मेरे नाटक | Mere Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ १७ कर्मचारी--क्षमा कीजिये न्ञानवती--श्रभी कल सचघ्या की वात है कि दरवारी गवेयों ने मेरे कसीदे गाये ब्राह्मणों ने मुझे श्राशीर्वाद दिया कमंचारियों नें मेरी झ्राज्ञा मानी पर लाज हो क्या गया है देवी मेरी पूजा स्वीकार वयों नहीं करती ? रानी अपने भ्रघिकार खो चुकी है क्या मेरा देगा स्वप्नो का ससार तो नही है । जागो पुजारी से मेरा प्रशाम कहो औ्रौर कहो कि मुक से तुरन्त मिल लें कर्मचारी वाहर जाता ६ राजा प्रवेश करता है ज्ञानवती--महाराज क्या श्रापने सुना है कि कालीमाता के मदिर से मेरी यलि सामिभी वापिस कर दी गई ? राजा--में जानता हूँ । शानवती--श्राप जानते हैं फिर भी श्राप चुप रह गये । राजा--मे तुमसे प्राथना करने श्राया हैं कि शझ्पराधी का श्रपराध क्षमा कर दो रानी नञानवत्ती--में मानती हू कि श्राप बहुत बडे दयावान हैं । पर यह दया नहीं कमजोरी है । यदि झ्रापकी दया किसी कार्य में आ्राडे आती है तो दड देने के लिये मुझे श्रधघिकार सौंप दीजिये । केवल यह वता दीजिये कि वह है कौन ? राजा--मेरी रानी वह में ही हूँ । यह मेरा ही श्रपराघ है कि मेने तृमकों इतना कष्ट पहुंचाया । जानवत्ती--में समक नहीं सकी ? राजा--श्राज से मेंने श्रा्ञा दी है कि देवताओं के मदिरो में रक्त की एक वूद न चहाई जाय । शानवत्तो--पर यह शभ्राज्ञा है किसकी ? राजा--माता की न्ञानवती--भला किसने सुनी राजा--मेने । शानवत्ती--न्नापने ? मुझे हंसी श्रा रही है । सारे विष्व की माँ केवल च्ापके




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