भाषा विज्ञान कोश | Bhasha Vigyan Kosh
श्रेणी : विज्ञान / Science, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
99.06 MB
कुल पष्ठ :
795
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ नकल शिकटोटीटशॉडिटेएएं पक टटक एप एप औशए एएंग एटा केटकपश फट िटलिटसय गे भाविक उच्चारण नहीं है। हिन्दी पथिक दाब्द भी इसी प्रकार का है । इसका प्रकत उच्चारण न तो प--थिक है और न पथू- इक अपितु ऐसा है जिसमें थू पहले अक्ष- रका पर-गहवर और दूसरेका पूर्व-गहवर है। इस प्रकारकी दूसरी स्थिति तब आती है जब दो अक्षरोंके बीच ऐसा संयुक्त व्यंजन आ जाता है जिसके बीचसे विभाजन करनसे अथें बदल जाता है । उदाहरणाथे अंग्रेज़ीमें नाइट-रेट छाए नए और नाइट्रेट 1010 दो शब्द हैं । पहुलेमें विभाजन ट-र के बीचमें सम्भव है किन्तु दूसरेमें यदि इस प्रकार विभाजन किया गया तो इसका अर्थ दूसरा न रहकर पहला हो जायगा । ऐसी स्थितिमें ट-र उच्चारण न करके टू उच्चा- रण किया जायगा । कहना होगा कि अक्षर- मध्यग ध्वनि प्रथम अक्षरके लिए पर-गहवर और दूसरेके लिए पुव-गहवर होती है । र- चनाकी दुप्टिसि ऐसी ध्वनि या ऐसा ध्वनति- समूह दोनों अक्षरोंका अंग है । भारतकें प्रा- चीन भाषा-शास्त्रियोंने भी अक्षर-विभाजतपर विचार किया है और संस्क्ृतके शब्दोंपर थि- चार करते हुए इसके लिए स्पप्ट नियमोंका निर्धारण किया है । ऋक्प्रातिशाख्य तैतिरीय प्रातिशाख्य अथर्व प्रातिशाख्य तथा वाज- सनेयी प्रातिशाख्य इस दृष्टिसि विशेषरूपसे ददनीय हैं । यों यह स्पप्ट है कि आजकी भाँति ही उस कालसें भी इस सम्बन्ध विद्वानोंमें पूर्ण मत्तक्य नहीं था । उदाहरणार्थ स्व॒र-मध्यग व्यंजन-गुच्छको ऋषप्रातिशाख्य- के अनुसार या तो वीचसे विभाजित किया जा सकता है या पूराका पूरा परवर्ती स्वर- के साथ रखा जा सकता है। किन्तु तैत्तिरीय कुछ ऐसी ही स्थितिमें गुच्छको केवल पर- . वर्ती स्वरके साथ रखनेके पक्षमें है । सीर्ष-अक्षर-रचनामें शीर्ष या शिखर चोटी 0682 0768 या एप०16प8 का बड़ा महत्त्व है । यहीं अक्षरका मेरुदण्ड या मूल आधार है । श्रवणीयताकी दुष्टिसे जैसा कि कहा जा चुका है शीष ध्वनि आसपास- मससम्पन ससनमपसरयसरसअपयससर सससससससससररिससपमपपनप्ससस्मपससमसपस्थससकरव्थमसरससथस्यानातम्म्सतसमससररससथप्पससससससपसससवसनदममनमम्यवममधनामतवपयमसथरमयमपमस्यनसवरलसमददयनममननममनयससरपननदलदवदननननवननालवा अक्षर की गह्वर ध्यतियोंस अधिक स्पप्ट तथा प्रमुख होती है । राम का आ कील की ई तथा छोर् का ओ स्पष्ट ही दीर्प है और आसपासकी गहवर ध्वनियोंसे प्रमुख स्पप्ट या मुखर है । किसी ध्वनिकी मुखरता दो बातोंपर आधारित होती है क ध्वतिकी अपनी आँतरिक मुखरता--हर ध्वनिकी अपनी आन्तरिक मुखरता होती है । प्रकृत्या ध्वनियाँ कम या अधिक मुखर होती हैं । इस आधारपर ध्वनियोंके प्रमुखत ८ वर्ग बनाये जा सकते हैं १ प् तू टू कू आदि अघोप स्पर्य तथा फ़ स् ह. आदि अघोप संघर्पी । २ व द ड ग व ज़ हु आदि प्रथमक्ते घोप रूप ३ म् न ड ण् आदि नासिक्य व्यंजन तथा पाइिवक लू एवं लू । ४ लंठित र। ५ उ इ। ६ ओ ए। ७ आऑ एऐ। ८ आ। इनमें प्रथम वर्ग सबसे कम मुखर है और बादके वर्ग क्रम- से अधिक मुखर हैँ । अन्तिम आ मुखरतम है। इनमें शु आदि कुछ ध्वनियोंकी मुखर- ताके विषय में मत-विभिन्नता भी है ख ध्वनियोंको सुखर बनानेवालें अन्य बाहय तरव -जैसे बलाघात इवास-बल तथा उच्चा- रण-दृढ़ता सुर था मात्रा आदि । इनमें किसी एक या एकसे अधिकके योगसे ध्वनि अपेक्षाकृत अधिक मुखर हो जाती है । ब्लू- सर्फील्ड ग्रेफ़ हॉकेट हेफ़तर आदि प्राय सभी भाषा-विज्ञानविदोंने वीपेके छिए मुख- रताकों आधार माना है । डॉ० सिद्धेश्वर वर्मा केवल मुखरताको आधार माननेके पक्ष- में नहीं हूँ । वें प्रमुखता ए01007700700 को महत्वपूर्ण मानते हैं । उनके अनुसार प्र- मुखतामें मुखरता इवास-बल और मात्रा ये तीन बातें हैं । कहना न होगा कि यहाँ अ- न्तर केवल नामका है । वर्माजीका मुख रता - से आशय केवक ध्वनिकी आन्तारिक मुख- रता है जब कि ऊपर मुखरताके दो रूप करके मात्रा और इवास-बलको दूसरेमें समा- हित कर लिया गया है । इस प्रकार आन्त- रिक और बाहय कारणोंसे उत्पन्न मुखरता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...