भारतीय संस्कृति | Bhartiye Sanskriti

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Bhartiye Sanskriti by योगेन्द्र बिहारी लाल माथुर - Yogrndra Bihari Lal Mathurरमेश कुमार श्रीवास्तव - Ramesh Kumar Shreevastav

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योगेन्द्र बिहारी लाल माथुर - Yogrndra Bihari Lal Mathur

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रमेश कुमार श्रीवास्तव - Ramesh Kumar Shreevastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ रासननस गठन नटिल दो गया । इस सुग के उत्तराद्ध में सापाण्य शॉकि क्ञोण होने लगी | इसकाल में चण व्यवस्था दृढ़ हुई । अन्तयण घिंचाह नहीं होता था । अनायों के फारण श्रनैक नयी लातियाँ बर्नी | आ्राश्रम व्यवस्था सिद्धान्तमात्र में रह गयी । तक्षशिला शिक्षा-केन्द्र था । व्यापार इस काल में जहाज द्वारा देशों से टोने लगा । विशाल मकानों एवं भवनों का निर्माण हुश्वा | श्रशोक के स्तम्भा से कला की. उस्कृप्टता का भी फ्ता लगता है | नैतिक दृष्टि से साधारणुतया समाज का ऊचा स्वर था | हमारी स स्कृति का अध्ययुग इसकाल के उपरान्त १ ई० से हमारी से स्क्ति का सध्यगुग प्रारम्भ होता है। १६० से ६०० हूं० तक के क्राल की पौराशिक काल कहां जाता है । इराकाल मैं ब्रादियुग के वैदिक साहित्य के स्थान पर लीकिक संस्क् की प्रधानता हुई । अपधंश और प्राकृत का प्रारमम हुआ | वैदिकधर्म के स्थान पर पीराशिक धर्म की स्थापना हुई । शुणकर्म-स्वमाववाली वणं व्यवस्था श्ब जातिंगत हो गई । राजनीति के दोत्र में जनपद-व्यवस्था के स्थान पर राय्राज्य संस्था विकसित हुई । जनमत और जनपद प्रशालियाँ एक प्रकार से छुप्त हो गार्यी । इसकाल में वैदिक कर्मकाणय शरवैद्िक धर्म वर्ग विशेष का धर्म हो गया । ्योद्धों में दीनयाम तर महायान दे। शास्ताएं हो गयीं । महाधान का प्रभाव मारस के लाएंगे धिशेष परश | सागाहन दस प्रासद् विद्ासू थे । हीनेयान का प्र्ार अशोष रा हुआ । ऊगनमंश दारा गद्दायान चीन जापान श्रादि देशों में गया । तिष्यत में इसका प्रचार सातवीं सी में हुआ । लंका नेहा स्याम कंवोडिया में दीनयाम फैलों ।.सहायान संस्कत में दिखा गया.। दीन कर्मकाशड लुश्मक्ति ससंके प्रधान झुंग- मे । दस विचारनास का हुए परे सर्व ममाव सा पड़ा |. महान बौद्ध धर्म की प्रतिशत के रुप में पीर शक को स्थापना . हुई । इसमें अधिकतर बौद्धर्म को. तुकरण था इनसकों गा संसार




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