नारी धर्म विचार भाग - १ | Nari Dharm Vichar Bhag I
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.12 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ लि कर , अथम सप्य -] . ८ ं
तर
'. 1 .सि.बढ़ कर ्यध्यापिका और ,चेदो से बढ़कर, पुस्तक. नहीं है. । .जितनी वाले
| वच्चा:मा- की श्गोद में सीखता है उतनी. बादुको नहीं अर्थात्. जितनी,.-झायु
-। -धिक' होती. जाती है'उतनी दी पंदिलें चर्षो की अपेक्षा ,करंम' सीखता,है'। |
1 झायु में. नहीं सीख-'सकता, एम० ए० साहिब माता, के सूखे' 'दोने से 'झति' |
| :लंज्जित, हुए । छाज, हंस कया: ९ लज्जाये' झपनी सूखों साता, भगिनी- झादिके :|
1 ,सारी +:लज्जाओऔर .दुग्खो का उठाना वारस्तच में पुरुपों की स्वार्थ: सिद्धि |
| :कीाए फल है ।: सूदर्म बुद्धि'शऔर गूढ़ विचार से कार्य नहीं लिया 1 .साधघारण :
| रीति से-यह. सोच लिया कि पुन्नी को. शिक्षा देंगे वह /घन उपाजैननकर घर में
:1' लावेगे सम्पूर्ण ूंह प्रफूल्लित शौर शानन्द्ति हो जायगा पुजियों को पढ़ाकर '
कया होगा ? 'पंथंम तो चह' दूसरे के घेर चली जावेगी इस से. छापना चया |
| लाभ, दोगा द्वितीय 'जितनां- घन 'उंनकी शिक्षा में ब्पेय , किया. जावेगा, यदि |
| ' नाम होगा परन्तु 'यह'. विचार न किया -किं जेब हमारा ही सा सब मनुष्यों |
:1:का विचार हो जावेगा “सो स्याने श्र एक ही सता, ” तो कोई भी लड़कियां
| न:पढ़ावेंग श्र ' दमारे यहां भी वही सूखों सत्री आवेगी जो हमारे ननभांति |
'॥ कि -सखमभानि बुभाने पंर भी किंसी एक बात पर ध्यान न देगी श्रौर सुर्सी की |
॥ एक हीं टांग शबतलावेगी । कभी हमारा कहा न मासेंगी -चंरन'घोंबी, घीमर, '
ववमारं, चुदड़े शादि की चात मानलेंगी । सदा यहीं में बह २ श्रत्यांचार '
«' मचबिमी कि सारे घर बातों को बन्द्र की भांति नचावेगी । दुःख को सुख '
: और झंघम को धर्म और श्रयुचित को उचित समझ्ेगी जैसा कि! झाविंया |
| का लक्षण है”. ' दी
यया ततवपंदा्थ न'जानाति' असादन्यास्सित्नन्यानिति-
1 शचनोातसा अवव्या ॥ के के रद |
| '.' .जों-ठींके श्रथ न जाना: जावे और का शोर ही समका' जावे 'उस को ' |
' झचिया कहते हैं । जैसा कि शोजं कल दोरदा है । पुरुप एम. एं. वो. ए.' |
1. वकील बैरि'प्रर' बाहर देशोद्धार 'साशियल रिलीजस रिफ़ाम पर बड़े २ लेकल्रर !
: ' देखे हैं और कुरीतियों के दूर केरल का मयत्त कर रे हैं। उन सम्पूर्ण प्रयत्न |
: -| और उनके “पाल किये 'हये रिज़ोस्यूशनों 'की तामील ' खियो की 'सूखताक |
कार्रण 'नहीं होती चरच् उनके विरुद्ध और: श्रुन्य २ कुसीतियां भतिदिन बढ़ती |
' जाती हैं उनकी बढ़िया रायोक़ी तांमील उनकी खिंया के सूखे दोने के कार !
'कंठिनही: नहीं- :वरन सम्भव सी दोरही ' है। हाय ! छाज ऐसे २ सुशील ,|
: |! घार्मिक :विद्धान, पुरुषों “की ऐसी' ९ सुखी गंवार संग है जो उनके |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...