नारी धर्म विचार भाग - १ | Nari Dharm Vichar Bhag I

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Nari Dharm Vichar  Bhag I by इन्द्रजीत सिंह - Indrajeet Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ लि कर , अथम सप्य -] . ८ ं तर '. 1 .सि.बढ़ कर ्यध्यापिका और ,चेदो से बढ़कर, पुस्तक. नहीं है. । .जितनी वाले | वच्चा:मा- की श्गोद में सीखता है उतनी. बादुको नहीं अर्थात्‌. जितनी,.-झायु -। -धिक' होती. जाती है'उतनी दी पंदिलें चर्षो की अपेक्षा ,करंम' सीखता,है'। | 1 झायु में. नहीं सीख-'सकता, एम० ए० साहिब माता, के सूखे' 'दोने से 'झति' | | :लंज्जित, हुए । छाज, हंस कया: ९ लज्जाये' झपनी सूखों साता, भगिनी- झादिके :| 1 ,सारी +:लज्जाओऔर .दुग्खो का उठाना वारस्तच में पुरुपों की स्वार्थ: सिद्धि | | :कीाए फल है ।: सूदर्म बुद्धि'शऔर गूढ़ विचार से कार्य नहीं लिया 1 .साधघारण : | रीति से-यह. सोच लिया कि पुन्नी को. शिक्षा देंगे वह /घन उपाजैननकर घर में :1' लावेगे सम्पूर्ण ूंह प्रफूल्लित शौर शानन्द्ति हो जायगा पुजियों को पढ़ाकर ' कया होगा ? 'पंथंम तो चह' दूसरे के घेर चली जावेगी इस से. छापना चया | | लाभ, दोगा द्वितीय 'जितनां- घन 'उंनकी शिक्षा में ब्पेय , किया. जावेगा, यदि | | ' नाम होगा परन्तु 'यह'. विचार न किया -किं जेब हमारा ही सा सब मनुष्यों | :1:का विचार हो जावेगा “सो स्याने श्र एक ही सता, ” तो कोई भी लड़कियां | न:पढ़ावेंग श्र ' दमारे यहां भी वही सूखों सत्री आवेगी जो हमारे ननभांति | '॥ कि -सखमभानि बुभाने पंर भी किंसी एक बात पर ध्यान न देगी श्रौर सुर्सी की | ॥ एक हीं टांग शबतलावेगी । कभी हमारा कहा न मासेंगी -चंरन'घोंबी, घीमर, ' ववमारं, चुदड़े शादि की चात मानलेंगी । सदा यहीं में बह २ श्रत्यांचार ' «' मचबिमी कि सारे घर बातों को बन्द्र की भांति नचावेगी । दुःख को सुख ' : और झंघम को धर्म और श्रयुचित को उचित समझ्ेगी जैसा कि! झाविंया | | का लक्षण है”. ' दी यया ततवपंदा्थ न'जानाति' असादन्यास्सित्नन्यानिति- 1 शचनोातसा अवव्या ॥ के के रद | | '.' .जों-ठींके श्रथ न जाना: जावे और का शोर ही समका' जावे 'उस को ' | ' झचिया कहते हैं । जैसा कि शोजं कल दोरदा है । पुरुप एम. एं. वो. ए.' | 1. वकील बैरि'प्रर' बाहर देशोद्धार 'साशियल रिलीजस रिफ़ाम पर बड़े २ लेकल्रर ! : ' देखे हैं और कुरीतियों के दूर केरल का मयत्त कर रे हैं। उन सम्पूर्ण प्रयत्न | : -| और उनके “पाल किये 'हये रिज़ोस्यूशनों 'की तामील ' खियो की 'सूखताक | कार्रण 'नहीं होती चरच्‌ उनके विरुद्ध और: श्रुन्य २ कुसीतियां भतिदिन बढ़ती | ' जाती हैं उनकी बढ़िया रायोक़ी तांमील उनकी खिंया के सूखे दोने के कार ! 'कंठिनही: नहीं- :वरन सम्भव सी दोरही ' है। हाय ! छाज ऐसे २ सुशील ,| : |! घार्मिक :विद्धान, पुरुषों “की ऐसी' ९ सुखी गंवार संग है जो उनके |




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