दीक्षा | Diksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ समाचार सुना और विश्वामिन्न एकदम क्षुब्ध हो उठे । उनकी आंखें सलाद कपोल--क्षोभ से लाल हो गए। क्षणभर समाचार लाने वाले शिप्य पुनवंसु को बेंध्याने घूरते रहे और सहसा उनके नेत्र झुककर पृथ्वी पर टिक गएं। अस्फुट-से स्वर में उन्होंने कहा असहा। शब्द के उच्चारण के साथ ही उनका शरीर सक्रिय हो उठा। झटके से उठकर वे पढ़े हो गए मारे दियाओ वत्स पुनवंसु पहले ही स्तंभित था गुरु की प्रतिक्रिया देपवार जड़ हो चुका था सहसा यह गाज सुनकर जैसे जाग पड़ा भर भटपटी-सी चाल चलता हुआ गुरु के आऐ-आगे कुटिया से वाहर निकल गया । विश्वामित्र झपटते हुए-से पुनर्वसु के पीछे चल पढ़ें । माग॑ में जहा-तहां आाश्रमवासियों के त्रस्त चेहरे देखकर का उद्बेग बढ़ता गया । आध्रमदासी गुरु को आते देख माप हट नतमस्तक पड़ें हो जाते थे । और उनका इस शडटर निनदू चादर होना गुरु को और अधिक पीड़ित कर जाड़ा लोग मेरे आश्रित हैं। थे मुझ पर विश्वास कर यहां झा हैं # डरने बौर रक्षा मेरा क्तेव्य है । और मैंने इन सब टेलर आए नर बनरसतित रस घोड़ा है । इनकी सुरक्षा का प्रबंधन आाश्रमवासियों की भीड़ हें दटार कैद हू ही विश्वामित्र वृत के थे




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