आज की राजनीति | Aaj Ki Rajneeti
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.46 MB
कुल पष्ठ :
559
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१. स्वतन्न्न-थारत स्थानों पर अंगरेजों को रखा गया है शायद यह भी देश को खींचकर ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल में ले जाने का कारण हुआ । पक महीप--या यह कह सकते हूँ कि अभी भी हमारे राष्ट्र के कर्णधारों की आँखें अंगरेजों के प्रताप से चकार्चींघ में हें अब भी वह दुनिया को उतना ही देख पाते हैँ जितना अंगरेजों ने हमें दिखलाया था । युधिष्ठिर भाई इतना कहने के लिए में क्षमा चाहूँगा कि हमारे नेताओं ने पुरानी दास-मनोवृत्ति को जरा भी अपने हृदय से नहीं हटाया है । उनके लिए दुनिया अंगरेज और अंगरेज दुनिया है सारी विद्या वुद्धि शिष्टाचार-सदाचार के आदर्श अंगरेज हैं। युधिष्ठिर--में समझता हूँ रामी वहन को अपनी सापेक्ष स्वतंत्रता की वात समाप्त करने का मौका देना चाहिए रामी--में इतना ही कहना चाहती हूँ कि १५ अगस्त सन् १९४७ गौर अब में अन्तर अवद्य है । आपने पतीले में पके भात को तो देखा होगा ? सब हँस पड़े । रानी ने फिर अपनी वात जारी रखी-आप स्त्री और पतीले के सम्चन्ध का खयाल करके हंस रहे है । युधिष्ठिर--हम हर्ष प्रकट करने के लिए ही हंसे । रामी वहन हम यही चाहते हैं कि नारी और पतीली का यह सुन्दर सम्बन्ध सदा अक्षुण्ण वना रहे । इन पतली अंगुलियों के नीरस पतीली से लगते ही उसमें अमृत भर जाता है । मेरा भगवान् पर विलकुल विश्वास नहीं है लेकिन नारी और पतीली के इस मधुर सम्बन्ध को स्मरण कर किसी-किसी समय विद्वास करने का लोभ हो आता है । मगवानदास--सो क्यों ? युधिष्ठिर--इसीलिए कि कम-से-कम दुनिया में और जगह नहीं तो नारी और पतीली के सम्बन्ध में तो उसका हाथ दिखलाई पड़ता है और हमारे वास्ते यह अच्छा ही हैं । लेकिन अब रामी वहन को वात खत्म करने देना चाहिए रामी--सूखे पके भात को यदि पतीली से अलग कर दिया जाय या पतीली उससे हटा दी जाय तो भी भात उसी आकार में थकका वाँधे रह जाता है और जब तक सड़ने न लगे तव तक उसे उसी आकार में रखा जा सकता हूँ । पहले वेसे आकार में रखने की जिम्मेदारी पीतल की पतीली को थी और अव वह काम भात की जाति-विरादरी वाले किनारे के चावल कर रहे हूं । इसी तरह हमारा देश १५ अगस्त सन् १९४७ से पहले पीतल की पतीली जैसे अंगरेज दासकों और सैनिकों की जकड़वंदी में था अब वह हमारी सीमा के भीतर प्रभुता नहीं रखते या कम-से-कम साक्षात् दखल देने का अवसर नहीं रखते लेकिन उसी तरह का
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