भारत में विज्ञान के बढ़ते कदम | Bharat Me Vigyan Ke Badhate Kadam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 भारत मे विज्ञान के बढ़ते कदम और तब हमारे देश ने हरित क्रांति के युग में प्रवेश किया। प्रौद्योगिकियों के एकीकरण से वर्ष 1970-71 में खाधाननों का लगभग 1080 लाख टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ यह उपज नवें दशक तक बढ़ कर 2000 किग्रा/हे. तक पहुंच गई। तब पहली बार खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का अनुभव किया गया। यह भी देखा गया कि अन्य वस्तुओं के उत्पादन में पर्याप्त दृद्धि हुई भारत में गेहूं चावल की अर्थ वामन किस्मों और मक्का ज्वार और बाजरा की संकर किसमें से लाभ उठाने के लिए 1966 में हाइ-इल्डिंग वरायटीन प्रोग्राम आरम्भ किया गया। मेक्सिको से 1965 में क्षेत्र परीक्षणों के लिए गेहूं की उच्च उपज वाली वामन किसमें लर्मा रोजो &54ए और सोनौरा 64 के 250 टन बीजों का निर्यात किया गया। इन किस्मों से प्रभावित होकर 1966 में भारत सरकार ने 18 000 टन बीजें का निर्यात किया। आरतीय वैज्ञानिकों ने यहां की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नई किसमें विकसित करने के प्रयास आरंभ किए। इन प्रयासों के फलस्वरूप दो नवीन किसमें कल्यान सोना और सोनालिका विकसित की गई ये दोनों ही किसमें यहां की अधिकांश कृषि जलवायविक परिस्थितियों के अनुरूप हैं। जह्दी ही विभिन्‍न नामें से ये किसमें सारे देश में लोकप्रिय हे गई। इसी समय चावल की भी ऐसी वामन किसमें विकसित करने के प्रयास किए गए जो उर्वरक की अधिक मात्रा को सहन करने के साथ साथ अधिक उपज भी दें। फिलीपीन्स से लायी गयी दो विदेशी किसमें ताइचुंग नेटिव 1 और ताइनान 3 अधिक उपज के बावजूद भी पसंद नहीं की गयी। जल्दी ही यहां के वैज्ञानिकों ने इन विदेशी क़िस्मों के साथ स्वदेशी किम्मों




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