प्रयाग के प्राचीन स्थलों का संजाती इतिहास | Prayag Ke Pracheen Sthalo Ka Sanjati Itihas

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Prayag Ke Pracheen Sthalo Ka Sanjati Itihas by विनय प्रकाश यादव - Vinay Prakash Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11 हत्याजनित पातक नहीं लगता तथा विधि-निदेश का भी उलंघन नहीं होता है। इसी उद्देश्य से अनेक लोग यहाँ तक कि बड़े-बड़े ज्ञानी और तत्ववेता भी ऐसा करते थे 1 0 सभी पुराणों का एक मत से यह कथन है कि देवोपम स्वर्गीय वट प्रयागराज में है। पुराणों में इसे आदि वट के नाम से कहा गया है जो प्रलय और कल्पान्तर के बाद भी अक्षय बना रहता है। भगवान विष्णु देवी महालक्ष्मी भगवती पार्वती भगवान शंकर और कोटि-कोटि देवता उसमें निवास करते हैं। वह अनेक सिद्धियों का प्रदाता है। उसके स्मरण मात्र से ही सारे पाप छूट जाते हैं। उसके दर्शनों से वेद शास्त्र पुराण तीर्थयात्रा ब्रत और दान आदि सभी का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है। पद्यमपुराण में उसकी महिमा इस प्रकार कही गयी है - आदिवट समाख्यात कल्पान्ते अपि-च दृश्यते। शेते विष्णुर्यस्य पत्रे अतो अयमव्यय स्मृत्त यह अक्षय वट आदि वट के नाम से कहा गया है ओर वह कल्पान्त प्रलय में भी स्थिर देखा जाता है या वर्तमान रहता है। उसके पत्र पर भगवान विष्णु शयन करते है। अतः उसको अक्षय वट कहा गया। ब्रह्मपुराण में कहा गया है 1- उस अक्षयवट का मूल जड़ स्वयं साक्षात्‌ विष्णु है स्कन्ध तना स्वयूं मंगलमयी लक्ष्मी है देवी सरस्वती उसके पत्र है और देवेश्वर शंकर पुष्प सभी फल ब्रह्मा है। इन सबके आधार भगवान विष्णु हैं। 2- प्रयाग के इस शुभ वट में समस्त वेद शास्त्र और पुराण तथा सम्पूर्ण दान तीर्थ और ब्रत विराजमान है।




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