जाकिर साहब की कहानी | Jaakir Saahab Kii Kahaanii
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.82 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)12 ज़ाकिर साहब की कहानी आमदनी में घर को सुचारू रूप से कुशलतापूर्वक चलाया । मियां को दावतें करने और मित्रों को खिलाने-पिलाने में बड़ी रुचि थी। अम्मा के.हाथ का बना भोजन उन्हें बहुत पसंद था और वह मित्रों को उत्तम भोजन कराना चाहते थे। अत अम्मां दावतों में स्वयं अपने हाथों से भोजन तैयार करतीं और कभी-कभी पचास-पचास व्यक्तियों का भोजन पकाती थीं । अक्सर मियां दावत दे आते थे और घर पर कहना भूल जाते थे। अम्मां उनकी इस भूल को इतनी सुंदरता से निभाती थीं कि किसी को अंदाजा भी न हो पाता था कि सब प्रबंध इतनी शीघ्रता से हुआ है। इधर कुछ समय से अम्मां का स्वास्थ्य खराब रहने लगा जिसके कारण वह अधिक समय इधर न लगा सकती थीं । मियां कभी-कभी भोजन करते समय उनके सामने मुस्करा कर कहते- हमारे यहां भी भोजन बहुत अच्छा पका करता था जब हमारी बीवी जिंदादिल थीं । यह अम्मा के हाथ के खाने की कामना थी । दूसरे दिन ही अम्मां रसोई में पायी जातीं । अम्मां का रंग इतना गहरा रहा कि संसार का कोई रंग मियां पर न चढ़ सका । जामिआ के दिनों से लेकर राष्ट्रपति भवन तक उन्हें एक ही रंग में पाया। उनकी सजधज वेशभूषा में तनिक भी अंतर नहीं आया । वह आज भी उतनी ही भोली भाली और सीधी हैं। उन्हें ईश्वर ने बहुत कोमल हृदय प्रदान किया है। मनुष्य तो मनुष्य वह पशु की पीड़ा भी नहीं देख सकतीं । मुझे वे दिन याद आते हैं जब उनकी चहेती बकरी एक अंधे कुएं में गिर गयी थी । उसके छोटे-छोटे बच्चों को वह अपने हाथ से दूध पिलाती थीं और उनके अनाथ होने पर अश्रु बहाती थीं। हम लोग छोटे-छोटे थे हंसा करते थे । बकरी को खोजने चारों ओर आदमी दौड़ रहे थे। अंत में कुएं के पास से कोई गुजरा तो बकरी की में-में सुनाई पड़ी । झांका तो वह मौजूद थी । उसे झटपट निकाला गया । उस समय अम्मां की खुशी देखने योग्य थी । इसी प्रकार राष्ट्रपति भवन की एक घटना तो हाल की है - राष्ट्रपति भवन के बाहर बरामदों में जंगली कबूतर अधिक संख्या में नीड़ बना लेते हैं। जब॑ उनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है और उनके कारण गंदगी होने लगती हे तो समय-समय पर उन्हें गोली से उड़ा दिया जाता है और कुछ दिनों के लिए उनमें कमी आ जाती है। वहां अम्मां के आवास के समय एक बार ऐसा ही सब कुछ हुआ - बंदूकों की आवाजें सुनाई देने लगीं तो उन्होंने पूछा कि ये बंदूर्के क्यों चल रही हैं? कर्मचारियों ने बताया कि कबूतर मारे जा रहे हैं। यह सुनकर उनके हृदय पर ऐसा प्रभाव पड़ा और ऐसी करुणाद्र हुई कि तबीयत खराब होने लगी । वह चाहतीं तो आदेश देकर मना करा सकती थीं लेकिन उस समय भी उनकी मांग में नम्नरता थी । उन्होंने कहला भेजा कि जब कभी कबूतरों को मारना हो तो उन्हें बता दिया जाया करे। मैं ओखले चली आऊंगी । आंखों के सामने यह अत्याचार नहीं देखा जाता । उनका यह संदेश पहुंचते
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