कुछ विचार | Kuchh Vichar

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Kuchh Vichar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३: १ कुछ विचार 1 2 मुझे यह कहते में हिचक नहीं कि में और चीजों की तरह कछा को भी उपयोगिता की तुछा पर तौछता हूँ । निस्सन्देद कछा का उद्देयय सौन्दये-बुत्ति की पुष्टि करना है और वह. हमारे आध्यात्मिक आनन्द की छुँजी है ; पर ऐसा कोई रुचियत सानसिक तथा आध्यात्मिक आसन्द नहीं जो अपनी उपयोगिता का पहलू न रखता हो । आनन्द स्वतः एक उपयोगिंता-युक्त वस्तु है और उपयोगिता की दृष्टि से एक ही वस्तु से हमें सुख भी होता हे और दुःख भी । आसमान पर छा ' लाठिमा निस्सन्देह वड़ा सुन्दर दृश्य है; परन्तु आषाढ़ में अगर आकाश पर वैसी ठाठिमा छा जाय; तो वह हमें प्रसन्नता देनेवाली नहीं हो सकती । उस समय तो हम आसमान पर काली-काली घटाएँ देखकर ही आनन्दित होते हैं । फूछों को देखकर हमें इसखिए आनन्द होता है कि उनसे फछों की आशा होती है; प्रकृति से अपने जीवन का सुर सिलाकर रहने में हमें इसी लिए आध्यात्मिक सुख मिछता है कि उससे हमारा जीवन विकसित और पुष्ट होता है। प्रकृति का विधान वृद्धि और विकास है और जिन भावों; अजुभूतियों और विचासें से हमें-आनन्द॒ मिलता है; वें इसी ब्ृद्धि और विकास के सहायक हैं । कछाकार अपनी कछा से सौन्दर्य की सृष्टि करके परिस्थिति को विकास के उपयोगी बनाता है । परन्तु सौन्दर्य थी और पदार्थों की तरह स्वरूपस्थ और चिरपेक्ष नहीं; उसकी स्थिति भी सापेक्ष है । एक रईस के छिए जो वस्तु सुख का साधन है; वही दूसरे के छिए दुःख का कारण हो सकती है। एक रइंस अपने सुरमित सुरम्य उद्यान में वेठकर जब चिड़ियों का कछ-गान सुनता है तो उसे स्वर्गीय सुख की शाह होती है ; परन्तु एक दूसरा सलन्ञास मचुष्य वैभव की इस सामग्री को घुणिततम वस्तु समझता हे । चन्घुत्व और समता; सभ्यता तथा प्रेम सामाजिक जीवन के आरम्भ से ही; आदुर्शवादियों का सुनहछा स्वप्न रहे है। धर्म-प्रचर्तकों ने धार्मिक; नैतिक और आध्यात्मिक वस्थनों से इस स्वप्र को सचाई. चनाने का सतत) किन्तु निष्फठ यरन किया है। महार्त्मा बुद्ध, हजरत ईसा)




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