मेरे कुछ मौलिक विचार | Mere Kuchh Maulik Vichar

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Mere Kuchh Maulik Vichar by पं किशोरीदास बाजपेयी शास्त्री - Pt. Kishoridas Bajpeyi Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर द् संरे कूर मौलिक विचार उस समय सुभि की सन साटक-प्रयोग के घारे में भावना बिभोर हो रहा था । जैसे कवि कुलीलवों की खोज करता हैं उसी तरह बुल्दीलव भी उसम नवीन नाटक की खोज में रहते हैं । पता लगा होगा कि बात्मीकि में पौलस्त्यवघं नाटक लिखा है सो पहुंच गये । एक सुबधार और दूसरा उसका मुख सहचर-सहयागी पारिपारथ्विक था । इन दोनों कुशीलवों के बारे मे कहा है-- कुीलनी तु धर्मंज्ञी नाजपूत्रीं यदास्थनों । भातरों रघरसम्पन्तों ददर्शाशिमया सिने 4 आाधमवासिनो -- जब कुछ दिन आधम में दोनों कुबीलय रहे लघ ज्ञात हुआ कि वे दोनों मुनि-वेल में है पर राजपु्र है सगे भाई है उन का स्वर सराहनीय हे और वे अपनी कला से बहुत यण प्रात कर चुपे है । यह भी लिखा हैं कि संगीत विद्या में दोनों बहुत निपृण थे । घास्सी वि ऐसे न थे कि किसी ऐएंरे-गेरे को नाटक सौप देते । खुब ठॉक-सजाबार देख लिया तव-- अिग्रायत प्रभु. अपना नाटक सत्हें लोप दिया । इसके अन्तर उन कुदीलवों ने नाटक का अध्ययन फिया अपनी मडली बुलाई प्रयोग की सैंयार की जिस पात्र का अभिनय जिसको सौपा गया उसने उससे दक्षता प्रात की और फिर मुनि-समाज मे ही पौल- स्व्यवध नाटक का प्रथम प्रयोग हुआ । नाटक देखकर मुनिजन सुर हो गये और आवाज उठी -- नुचरनियवू समप्येतत्‌ घत्य्सिद दशित्तम जो घटना वहुत पहले घटी थी उसे आँखों के सामने ला दिया ऐसा जान पड़ा कि यहू सब हमारे सामने ही हुआ मुियों ने फिर कुचीलदों को उपहार में तरह-तरह की वस्तु मेंद कीं जो उनके पास थी । वे राजकुमार थे कुलीलव तो भी सुनिजनों के दिये हुए ये वल्कल आदि उपहार उन्होंने सम्मात-पुवंक यहण किये । इसके बाद वे कुशीलव माटक लेकर चले गये |




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