कुछ विचार | Kuch Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.41 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५ ४ : : कुछ विचार 2 :
उसके ठ्यंग्य विद्र प की स्थायी सामग्री थी । वह भी मजुष्य है; उसके
भी हृदय है और उसमे भी आकां्राए है,--यह का की कल्पना के
बाहर की बात थी |
कला नाम था और अब भी है; संकुचित रूप-पूजा का; शब्द-
योजना का, भाव-निबंधन का । उसके छिए कोई आदर नही' हे; जीवन
का कोई ऊँचा उद्देरय नहीं हे:--भक्ति; वेराग्य, अध्यात्म और दुनिया
से किनाराकशी उसकी सबसे उची कल्पनाएँ हैं । हमारे उस कछाकार
के विचार से जीवन का चरम लक्ष्य यही है । उसकी हृष्टि अभी इतनी
व्यापक नही कि जीवन-संप्राम मे सोन्दय का परभोत्क्प देखे । उपवास
और नग्ता में भी सौन्द्य का; अस्तित्व संभव है; इसे कदाचित् वह
स्वीकार नहीं' करता। उसके लिए सौन्दय सुन्दर स्त्री हे,-- उस वच्चोवाढी
ऱारीव रूप-रहित ख्री मे नही जो बच्चे को खेत की सेंड पर सुलाये
पसीना चुहदा रही है , उसने निश्चय कर छिया हे कि रेंगे होठो; कपोलों
और भोहो मे निस्सन्देह सुन्दरता का वास है--उसके उठे हुए बालो,
पपड़ियोँ पड़े हुए होठों और कुम्दलाये हुए गालो से सौन्दय का
प्रवेंग कहां ? «
पर यह संकीण-हृष्टि का दोप है । अगर उसकी सौन्दर्य देखनेवाछी
चष्टि से विस्वृति आ जाय तो वद्द देखेगा कि रेंगे होठों आर कपोलो की
आड़ मे अगर रूप-गब और निष्ठरता छिपी हे; तो इन मुरझाये हुए
होठों ओर कुम्हछाये हुए गालों के ऑसओ में त्याग: श्रद्धा ओर कष्ट-
सहिष्णुता हूँ । दो, उसमें सफासत नहीं, टिखावा नहीं, सकुमारता नहीं |
दमारी कला यौवन के प्र स में पागछ है ओर यह नही जानती कि
जवानी छाती पर हाथ रखकर कविता पढ़ने, नायिका की निप्ठुरता ख़रता
का रोसा रोने या उसके रूप-गव ओर चोचछो पर सिर धघनने में नहीं
है । जवानी नाम है आदगवाद का, हिम्मत का, कठिनाई से मिलने की
इच्छा का; आत्म-त्याग का । उसे तो इकचाल के साध कहना होगा--
अज़ दस्त ,जुनूने मन जिश्नील जें सदें,
यज़दाँ वकमन्द आवर ऐ दिम्मत सरदान।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...