भारत के जनप्रिय सम्राट | Bharat Ke Janpriya Samrat
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.16 MB
कुल पष्ठ :
43
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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No Information available about फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी - Phaneendra nath Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
और दयालुतावश अपना हाथ उसे देकर कुएँ से बाहर किया। देवयानी ने
कहा-*अब यह हाथ मैं किसी अन्य को नहीं दूँगी। यह जीवन आपको अर्पित
किया।' वृहस्पति का पुत्र कच मेरे पिता शुक्राचार्य से मृत संजीवनी विद्या '
पढ़ा था। पढ़ाई पूरी कर वह जब जाने लगा तो देवयानी नें उससे विवाह
का प्रस्ताव किया। पर, गुरुपुत्री होने से कच ने नकार दिया। इस पर देवयानी
ने शाप दिया कि कच की पढ़ी विद्या निष्फल हो जाय। कंच ने भी देवयानी
को शाप दिया कि उसका विवाह किसी ब्राह्मण लड़के से न हो। इस शाप
से क्षत्रिय ययाति से ब्राह्मण देवयानी के विवाह की संभावना देवयानी ने सद्य:
संभावित दिखायी प्रारब्ध के अधीन। ययाति ने बात मान ली।
... देवयानी वहाँ से घर लौटी, पिता शुक्राचार्य से सारी बातें बतायी। शुक्राचार्य
क्षुब्ध हो गये। वे देवयानी को लेकर नगर से निकल पड़े। शाप देने या शत्रुपक्ष
से मिल जाने के भय से वृषपर्वा शुक्राचार्य को मनाने में ही हित समझा। शुक्राचार्य
ने कहा-'मैं अपनी पुत्री देवयानी के अपमान और उपेक्षा को अपना तिरस्कार
मानता हूँ। देवयानी जैसा चाहे, वैसा करो, तभी मैं लौट सकता हूँ।' 'वृषपर्वा
ने शर्त्त मान ली। देवयानी ने कहा-'मेरे पिता जिस किसी को मुझे दें और मैं
जहाँ कहीं जाऊं शर्मिष्ठा अपनी सहेलियों के साथ मेरी सेवा में वहीं चले।' शर्मिष्ठा
ने भी परिवार के संकट टालने हेतु देवयानी की बात मान ली। विवाह के समय
. शुक्राचार्य ने कहा ययाति से-*राजन शर्मिष्ठा को सेज पर कभी सोने मत देना।
. देवयानी ही तुम्हारी अंकशायिनी है।' देवयानी कुछ समय बाद पुत्रवती हो गयी।
शर्मिष्ठा ने भी एकान्त॑ में ययाति से पुत्र कामना की। इस प्रकार देवयानी से दो
पुत्र हुए-यदु और तुर्वसु। वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से तीन पुत्र हुए-द्रुह्यु, अनु
और पूरु। पूरु से ही भरतवंश में पाण्डव हुए आगे चलकर। पता चल ही गया
कि शर्मिष्ठा के तीनों पुत्र ययाति से ही हैं। देवयानी पिता के पास आयी
और रो-रोकर सारी बातें शुक्राचार्य से बतायीं। ययाति भी देवयानी को मनाने पहुँच
चुके थे। शुक्राचार्य ने ययाति को शाप दे दिया-'तुम्हें बुढ़ापा आ जाय।' ययाति
ने कहा-*आपके शाप से आपकी पुत्री देवयानी का अनिष्ट है।' शुक्राचार्य ने कहा-
अच्छा प्रसन्नता से जो तुम्हें अपनी युवानी दे दे उससे अपना बुढ़ापा बदल लो।'
ययाति ने अपने सभी पुत्रों में एक-एक. से यौवन मांगा। पर, यदु और तुर्बसु- .
देवयानी पुत्र तैयार नहीं हुए। शर्मिष्ठा के भी द्रुह्ु और अनु भी तैयार नहीं
हुए। पर, पूरु ने पिंता में निष्ठा व्यक्त करते हुए बुढ़ापा ले लिया और अपना
यौवन ययाति को दे दिया। ययाति सातों द्वीपों के एकछत्र सम्राट थे। इन्द्रियाँ
भोग से तृप्त नहीं हो सकीं। फिर ययातिं को वैराग्य हुआ। जीवन व्यर्थ गया-
ऐसी आत्मग्लानि हुई इन्हें। ययाति ने दक्षिण पूर्व. दिशा में द्रुद्यु, दक्षिण में
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