शहर मैं घूमता आईना | Shahar Main Ghoomta Aaina

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Shahar Main Ghoomta Aaina by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ | झश्क ठरण्डी शहनशीन पर टिका दिया । एक सुखद सिहरन उसकी रीढ़ की हड्डी में दोड़ती हुई उसके पाँवों तक चली गयी । दायीं बाँह को उसने शहनशीन के साथ नीचे को ढीला छोड़ दिया । उसकी बग़ल शहनशीन के गोल किनारे से सट गयी श्रौर फिर एक ठण्डी सरसराहट उसके शरीर में दौड़ गयी । लेकिन चेतन को बड़ा सुख मिला । वह उसी तरह चुपचाप बे-हिले-डुलें लेटा रहा । सुख की भ्रनुभति से उसकी अ्राँखें मंद गयीं ....पर सुख की वह भ्रतुभूति नीला से सम्बन्धित सुख के क्षरों को उसके सामने ले श्रायी भ्रौर वहीं लेटे-लेटे आँखें मंदे-मँदे वह उनमें खो गया.... दे ....बस्ती के झ्रडूडे पर वह श्रपने मित्र मुल्कराज के साथ खड़ा हैं । स्कूल से झाती अपनी भावी पत्नी को चोरी से देखने श्राया है । तभी छुट्टी हो जाती है लड़कियों की टोलियाँ झ्राने लगती हैं....तेरह-चौदह् वर्ष की एक लड़की हाथ में किताबें थामे मानो माप-माप कर कदम रखती हुई जैसे अपनी सुन्दरता से अभिज्ञ सहेलियों में घिरी श्राती है । जाते-जाते वह एक उड़ती-सी चंचल दृष्टि चेतन पर डाल देती है । चेतन का दिल घड़क उठता है....वह श्रपने मित्र मुल्कराज की श्रोर भ्राशा-भरी निगाहों से देखता है । मुल्कराज संकेत से बताता हे कि वह ॒नहीं....श्रौर चेतन का जी चाहता है कि श्रपनी होने वाली पत्नी को देखे बिना वापस चला जाय । ....झपनी उस मोटी-मुटल्ली भावी पत्नी को देख कर श्रौर नापास करके भी वह ॒श्रपने पिता के भ्रादेश पर श्रौपचारिक रूप से उसे फिर देखने जाता है--समाज-सुधारक मास्टर नन्दलाल के घर शर्म श्रौर संकोच से भुकी भ्रपनी भाँखों को वह उठाता है तो उसका हृदय फिर धक्‌ से रह जाता है--उसकी होने वालो पत्नी के निकट वही लड़की बेठी है ....वह माप-माप कर कदम रखने वाली चंचल चपल लड़की....उस निमिष-मात्र में चेतन को उसके मुख का एक भाग उस भाग को ज्योति- मंय-सा करता हुआ मोतियों का क्णफूल उन चंचल शभ्राँखों की एक रसीली चितवन ही दिखायी देती है ।




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