बाजीराव पेशवा | Bhaji Rao Peshwa

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Bhaji Rao Peshwa by उमाशंकर - Umashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ बाजीराव पेदावा नकलावत वाला हस्त लाल एंगल एक खासकर कप क कपल काला तुम जेसे बहादुरो की झ्राज देश को आ्रावश्यकता हैं । बोलो तेयार हो? युवक बड़ी उलभान में पड गया । क्या कहे क्या न कहे । पेदावा की बात का नाही करना भी उचित नहीं था श्र साथ ही श्रपना भेद भी खोला नहीं जा सकता था । उसकी परेशानी बढ गई। तब तक पेशवा बोल उठे-- सोच लो युवक ग्रभी जल्दी नहीं है। अपने माता-पिता से सलाह कर लो । जाझो । मैं इधर से जाऊंगा । वह दूसरी भर मुड़ गये । जब तक बाजीराव दिखलाई पड़ते रहे युवक वहीं खड़े-खड़े उन्हें देखता रहा । उसकी झ्रॉखों से आ्ोभल होने पर वह मुड़ा और कुछ सोचता हुमा पुना की श्रोर चल पड़ा । यह मर्दानि पोशाक में मस्लानी ही थी जिसने श्रपनी वीरता और साहस का परिचय देकर बाजीराव को श्राश्चयं में डाल दिया था । मस्तानी ने घर पहुँचते ही अपनी माँ से एक-एक बात विस्तार के साथ बतलाई । बुद्िया की गर्दन तन गई। उसे श्राज अपनी पुत्री पर महादु गवं था ।




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