कश्मीर की कहानियाँ | Kashmir Ki Kahaniyaa

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Book Image : कश्मीर की कहानियाँ  - Kashmir Ki Kahaniyaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) विद्रोह करती तो डोगरा 'फ़ोज उनके सर कुचलने- को सदा तैयार रहती । यों तो हर साल जब अहलकार लोग दौरा करते, यह जुल्म और अत्याचार होता रहता । पके हुए फल, पकी हुई औरतें, पकी हुई फ़सलें, हर चीज़ पर जागीरदारी का लगान था, मालिया, महसूल, चंगी, नज़राना ्रोर सूद था और यह सूद दर सूद बढ़ता चला जा रहा था; इस पर भी मेहनत करने वाला किसान जिन्दा था । वह मेहनत करता था ओर लुटता था, फिर भी जिन्दा था और लड़ाई करता था । मार खाता था आर मार सहता था फिर भी लड़ता था। सहम-सदम कर लड़ता था पर दाँव लगने पर कोई वार खाली नहीं जाने देता था । यह लड़ाई अक्सर व्यक्तिगत श्रौर असंगठित रूप में होती पर होती ज़रूर थी । वह लड़ता था और गीत भी गाता था ओर जहाँ तक हो सके अपनी स्त्रियों; बच्चों, बहू बेटियों की रक्षा भी करता था । अक्सर नाकाम रहता, कभी-कभी कामयाब भी हो जाता । मेरी ' शुरू की कहानियों में आप को इन व्यक्तिगत लड़ाइयों का सुरारा मिलेगा, उसकी महदरूमियों और नाकामियों की चर्चा भी बहुत गी श्रौर भंकलाहट और निराशा ओर कुचली हुई जिन्दगी पर दया और तरस का भाव भी विशेष रूप में मिलेगा । इसके बाद वद्द दौर आया जब धीरे-धीरे कश्मीरी जनता संगठित होने लगी श्रौर अपने मौजूदा नेताओं को मोहरा' बनाकर आगे चली । उस जमाने में उन्होंने बड़ी.बे-जिगरी से अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ी श्रोर कई मोर्चे क्रतेह कर लिये । शुरू-शुरू में उन्हें जल्म श्र अत्याचार के कड़े वार सहने पड़े, कई बार ये आन्दोलन बड़ी सख्ती से दबा दिये गये या साम्प्रदायिक आग में झुलसा दिये गये। लेकिन वास्तव में यह आन्दोलन साम्प्रदायिक आंदोलन न था। कुचली हुई




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