वर्त्तमान भारत | Vartaman Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
८ वबतमान भारत
काल से आया हुआ और जेन-बोद्धों के विष्रव में बहुत बढ़े चढे
आकार में प्रकट वह पुराना बेर मिट गया ।
अब यह दोनों प्रबठ राक्तियाँ एक दूसेर की
साजहाकियों सी डी गईं । परन्तु अब त्राहमणों में न
पुरोहित-राक्ति का. हैं ऐज ही रहा आर न ध्तत्रियां में वह
पारस्परिक साहाय्य। मंपिण्ड बल ही । एक दूसरे के स्वाथ की
सहायता तथा बौद्धों का नाम तक मिटाने
में ही यह दो सम्मिठित दाक्तियोँ अपने बल को गैँवाती रहीं ओर
तरह तरह से बैंटकर प्राय: नष्ट सी हो गईं । दूसरों का रक्त चूसना,
घन हरण करना, वेर चुकाना आदि इनका नित्य का काम था |
ये प्राचीन राजाओं के राजसूप आदि यज्ञों की थोर्थी नकल किया।
करते, भार्टों ओर चारणों आदि ख़ुशामदियों के दल से घिरे रहते,
और मन्त्र-तन्त्र के घोर दाब्द-जाल में फँँसे थे । इसका फल यह
हुआ कि ये छोग पश्चिम से आय हुए मुसढ्मान व्याघों के सहज
शिकार बन गए ।
जिस पुरोहित शक्ति की छडाइ राजशक्ति के साथ वेदिक
काल से ही चढी आ रही थी, जिस दाक्ति की प्रतिस्पघी को भगवान्
श्रीकृष्ण ने अपनी अमानव प्रतिभा से अपने
समय में मिटा सा ही दिया था, जो
पुरोहिंत-दाक्ति जैन और बौद्ध विप्रब के
समय भारत के कमक्षेत्र से करीब करीब
उठ गई थी, अथवा जिसने उन प्रबल प्रति-
स्पर्थी धर्मों की पाबन्दी करके किसी तरह अपना दिन काटा था,
मुसलमान राज्य के
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मुसलमान राज्य में
पहले से ही दुबेल
पुरोहित-दाक्ति का
सम्पूण नादा |
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