वर्त्तमान भारत | Vartaman Bharat

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Vartaman Bharat by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श ८ वबतमान भारत काल से आया हुआ और जेन-बोद्धों के विष्रव में बहुत बढ़े चढे आकार में प्रकट वह पुराना बेर मिट गया । अब यह दोनों प्रबठ राक्तियाँ एक दूसेर की साजहाकियों सी डी गईं । परन्तु अब त्राहमणों में न पुरोहित-राक्ति का. हैं ऐज ही रहा आर न ध्तत्रियां में वह पारस्परिक साहाय्य। मंपिण्ड बल ही । एक दूसरे के स्वाथ की सहायता तथा बौद्धों का नाम तक मिटाने में ही यह दो सम्मिठित दाक्तियोँ अपने बल को गैँवाती रहीं ओर तरह तरह से बैंटकर प्राय: नष्ट सी हो गईं । दूसरों का रक्त चूसना, घन हरण करना, वेर चुकाना आदि इनका नित्य का काम था | ये प्राचीन राजाओं के राजसूप आदि यज्ञों की थोर्थी नकल किया। करते, भार्टों ओर चारणों आदि ख़ुशामदियों के दल से घिरे रहते, और मन्त्र-तन्त्र के घोर दाब्द-जाल में फँँसे थे । इसका फल यह हुआ कि ये छोग पश्चिम से आय हुए मुसढ्मान व्याघों के सहज शिकार बन गए । जिस पुरोहित शक्ति की छडाइ राजशक्ति के साथ वेदिक काल से ही चढी आ रही थी, जिस दाक्ति की प्रतिस्पघी को भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने अपनी अमानव प्रतिभा से अपने समय में मिटा सा ही दिया था, जो पुरोहिंत-दाक्ति जैन और बौद्ध विप्रब के समय भारत के कमक्षेत्र से करीब करीब उठ गई थी, अथवा जिसने उन प्रबल प्रति- स्पर्थी धर्मों की पाबन्दी करके किसी तरह अपना दिन काटा था, मुसलमान राज्य के च *- _ #५ «हू पहले छोटी छोटी मुसलमान राज्य में पहले से ही दुबेल पुरोहित-दाक्ति का सम्पूण नादा |




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