दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ ( जैन कथा कहानियाँ ) | Do Hajar Varsh Purani Kahaniyan ( Jain Katha Kahaniyan )
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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No Information available about जगदीशचन्द्र जैन - Jagadish Chandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्न्् रु न
चाहिये कि वह भझात्मशुद्धि के लिये तथा दूसरों को धर्में में स्थिर करने
के लिये जनपद विहार करे, तथा जनपद-विहार करने वाले साधु को
मगध, मालवा, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, द्रविड़, गौड़, विदर्भ झादि
देशों की लोक-भाषाओं. में कुशल होना चाहिये, जिससे वह भिन्न-भिन्न
देशों के लोगों को उनकी भाषा में उपदेश दे सके । उसे देश-देश के रीति-
रिवाजों का भ्ौर भ्राचार-विचार का जान होना चाहिये जिससे उसे लोगों
में हास्यमाजन न बनना पड़े (१-१२३६, १२२६-३०, १२३६) । ये
अमण देश-देशांतर में परिभ्रमण करते हुए लोक-कथाग्रों हारा लोगों को
सदाचार का उपदेश देते थे, जिससे कथा-साहित्य की पर्याप्त प्रमिवुद्धि
हुई ।
(रे)
जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग झागम' के नाम से कहा जाता हैं ।
ये श्रागम '४६ हे--
१२ अंग :--झायारंग, सूयगड, ठाणांग, समवायांग, भगवती,
नायाधम्मकहा, उवासगदसा, अंतगडदसा, श्रतुत्तरोबवाइयदसा, पण्हबा-
गरण, विवागसुय, दिट्िवाय ।
१२ उपांग :--भ्रोवाइय, रायपसेणिय, जीवाशिगम, पप्नवणा, सुरिय-
पन्नति, जंबुद्दीवपन्नति, चन्दपन्नति, निरयावलि, कप्पवडंसिया, पुप्फिया,
पृप्फचूलिया, वण्हिदसा ।
१० पइन्ना :--चउसरण, शझ्राउरपच्चक्खाण, भत्तपरिश्ना, संथर,
तंदुलवेयालिय, चन्दविज्कय, देविंदत्यव, गणिविज्जा, “महापच्चक्खाण,
वीरत्यव ।
६ छेदसूत्र :---निसीह, महानिसीह, बवहार, भाचारदसा, कप्प
(वुहत्कल्प ) , पंचकप्प ।
४ मूलसूत्र :--उत्तरज्मकयण, झावस्सय, दसवेयालिय, पिंडनिज्जुत्ति ।
नन्दि भौर भनुयोग ।
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Balram
at 2018-12-19 18:33:03"NO USE"
Balram
at 2018-12-19 08:10:09