दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ ( जैन कथा कहानियाँ ) | Do Hajar Varsh Purani Kahaniyan ( Jain Katha Kahaniyan )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्न्् रु न चाहिये कि वह भझात्मशुद्धि के लिये तथा दूसरों को धर्में में स्थिर करने के लिये जनपद विहार करे, तथा जनपद-विहार करने वाले साधु को मगध, मालवा, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, द्रविड़, गौड़, विदर्भ झादि देशों की लोक-भाषाओं. में कुशल होना चाहिये, जिससे वह भिन्न-भिन्न देशों के लोगों को उनकी भाषा में उपदेश दे सके । उसे देश-देश के रीति- रिवाजों का भ्ौर भ्राचार-विचार का जान होना चाहिये जिससे उसे लोगों में हास्यमाजन न बनना पड़े (१-१२३६, १२२६-३०, १२३६) । ये अमण देश-देशांतर में परिभ्रमण करते हुए लोक-कथाग्रों हारा लोगों को सदाचार का उपदेश देते थे, जिससे कथा-साहित्य की पर्याप्त प्रमिवुद्धि हुई । (रे) जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग झागम' के नाम से कहा जाता हैं । ये श्रागम '४६ हे-- १२ अंग :--झायारंग, सूयगड, ठाणांग, समवायांग, भगवती, नायाधम्मकहा, उवासगदसा, अंतगडदसा, श्रतुत्तरोबवाइयदसा, पण्हबा- गरण, विवागसुय, दिट्िवाय । १२ उपांग :--भ्रोवाइय, रायपसेणिय, जीवाशिगम, पप्नवणा, सुरिय- पन्नति, जंबुद्दीवपन्नति, चन्दपन्नति, निरयावलि, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पृप्फचूलिया, वण्हिदसा । १० पइन्ना :--चउसरण, शझ्राउरपच्चक्खाण, भत्तपरिश्ना, संथर, तंदुलवेयालिय, चन्दविज्कय, देविंदत्यव, गणिविज्जा, “महापच्चक्खाण, वीरत्यव । ६ छेदसूत्र :---निसीह, महानिसीह, बवहार, भाचारदसा, कप्प (वुहत्कल्प ) , पंचकप्प । ४ मूलसूत्र :--उत्तरज्मकयण, झावस्सय, दसवेयालिय, पिंडनिज्जुत्ति । नन्दि भौर भनुयोग ।




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  • Balram

    at 2018-12-19 18:33:03
    Rated : 4.5 out of 10 stars.
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  • Balram

    at 2018-12-19 08:10:09
    Rated : 4.5 out of 10 stars.
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