बारहवीं शताब्दी तक के संस्कृत महाकाव्यों में विप्रलम्भ श्रृंगार - एक अध्ययन | Barahavi Shatabadi Tak Ke Sanskrit Mahakavayo Me Vipralambh Sringar - Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
345
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)करे सरता से पी बाते हैं ।'
कपण्य में एस के महत्व की अनेक प्रकार से घोषणा की
है नमन
(क)... सकृवयणन मौरस शादतों से धवराते हैं । (परन्तु) काण्य के दारा
बीवन के पृत्त चार्थ-नतुच्टय का उस्हे खत बीए मु रीति दे शान प्राप्त हो बाता
है बयछिये अत्यन्त यत्तपुवक काण्य को एसों ले समृद्ध करना नाक ।
(स)... दुख के छिये मी, प्रकट कहकारी से देवी प्यमाग, बीॉशाथपण के कारण
उभ्स्यक़ बाण का घनी महाफकतथि सरख कान्य की रचना कर युनात्तस्थायी तथा बगदुन
ण्यापी यह का चिस्तार करता है ।
(व? शलार में वर्ष, अर, काम अर सपा बहुणन गाय से ख़स्ट
कर्ण्यों मैं एस के खाथ उनका निवस्थत करेगा वाक्य
(ब).... नियुण कचि धारा स्यक कप वे स्कृ टतया चात लेठी में वाणिस ये
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की एचना नहीं कर सकता; अत: इनका आपर करना चकित
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