महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र | Maharshi Svaami Dayananda Sarasvati Ka Jivan Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्प. २६. तह ठ देर. ( ४ ) मध्य ८ प्रथम परिच्छीद जोधपुर में नि्भयतापुर्वक धर्मोपदेदा घौर परलोकगमन प३० -पप्र १. स्वामी जी का जोधपुर में पघारना ८३०, २. जोधपुर यात्रा का पहला ही दिन दुःख- दायी रहा ८३१, ३. जोधपुर नरेश दकषताथं पधारे ८३२, ४. राजाश्रों में वेद्यागमत से भारी' क्षोभ प३४, ५. राजपुरुष सिंह के समान हैं धौर वेदया कुतिया, ६. राजाशों की दुर्दशा पर निरन्तर चिन्ता ८३६, ७. स्वामी जी के शत्रु उत्पन्न हो गये ८३७, ८. श्रचानक उदरझूल श्रारम्भ, €. स्वामी नी का रोग बढ़ता ही गया ८३८, १०. श्रक्तूबर मौस में रोग की दशा का दैनिक विवरण ८३४, ११ मृत्यु का पुर्वाभास श्रत्तिम ग्रभिलाषा प४१, १२. स्वामी जी को विप दिये जाने का सःदेहू घर४, १३ दिष्यो को आशीर्वाद व श्रत्तिम विदाई ८४६ १४. प्रन्तिम दृदय तथा बिदाई ८४७, 9५. श्रन्तिम यात्रा द४८, १६. स्वामी जी का व्यक्तित्व ८४९, १७. गोरक्षा के सम्बन्ध में स्वामी जी की सराहनीय कार्यवाही ८५३, १८. सही पत्र पर हस्ताधषार करने के अनुरोध के लिए बिज्ञापन प्र । तृतीय भाग अध्याय १ स्वामी विरजानन्द जी पप्ुद प६प १. जन्मकुन्त व मात्रा पिता, र. बचपन से उपासक दवा में ८५६, ३. देववागी का श्रादेशा, ४. संत्याम ग्रहण व व्याकरण का श्रध्ययन, ५. काशी में न्याय, मीमासा व वेदास्त को ऑध्ययन ६. अलवर में श्रघ्यापन ८५७, ७. मथुरा में प्रागमन, ८, कृष्णा लास्त्री से ब्याक्रगा में दास्त्रार्थ का भमेला पप्रप, €. सेठ का झ्रन्याय ८५६, १०, प्रमागा की खोज के लिए श्रर्टध्यायी का पाठ सुना, ११. महाभाष्य निरुकत श्रौर निघण्टु भी मिले ८६१, १२ विरजानत्द जी का रुख बदला पर, १३ सच्चे शिष्य दयानन्द का आ्रागमन ८६३, १४. मिभंय सत्यघक्ता विरजानन्द, १४ काशी में विद्त्ता की घाक ८६४, १६. प्रतेक दिग्गज पडित पराजित ८६, १७ अअनसता- चार्य से तीन महीने तक शास्त्राथं, १८. अपनी श्रनापं रचना भी छोड़कर नहीं जाना चाहते थे, १४. मृत्यु का पूर्वाभास श्रौर मृत्यु ८६७ । अध्याय २ प्रथम परिच्छेद रासार के झ्ारम्भिक इतिहास पर एक हष्टि पदूप प७० द्वितीय परिच्छेद भ्रन्धकार के काल में दीपकों का प्रकाश द३०-८७५ १. विक्रासवाद ८७२, २. विकासवाद की अूटियां ८७३, रे. वेद सूर्य को दिखाने वाला दयानन्द ८७५ ।




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