चतुर्विश उपनिषद सार संग्रह भाषा | Chaturvinsht Upnisad Sangrah Bhasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). पेदान्तशाख्रका अधिकारिनिरुपण । (७ )
करना; कि यह निन्दक पुरुष हमारे शत नहीं; हैं किन्तु हमारें
परम मित्र हैं, क्योंकि दुग्सरुप फू देनेहारे जो हमें
पाप कर्म हैं हिनको यह निन्दुक अपने विपे छेताहें
यथा श्रुति ( सुद्दः साधुकुत्यां दिपन्तः पापरृत्यां ॥ अर्थ
ज्ञानीका सेवक तथा प्रशंसक ज्ञानीके शुभकर्मोका फठ पाता
है भौर ज्ञानीका देपी तथा निन्दक ज्ञानीके अशुभ वर्मा का
फ पाताहे ) इससे परे कोई उपकार नहीं है. कि हमारे
किये प्रापकर्मोका फठ वह भोगेगा, ऐसा विचार कर क्षमा
करना, इसी प्रकार दुवंचनादि या ताढनादि करके जो दुःख
देव उसको क्षमा करके उसका हितही चाहना, यह
विचारकर कि हमारे शरीरमें तथा इन पुरुषों तथा अन्य
भाणियोंके शरीरोंगें आत्मा एकहीदै, यह विचार कर उन
दु्शेकाभी अनिष्ट न चाहना वरन इष्ही चाहना इस्पादि
यह तिप्तिक्षादे ॥ आत्माके साक्षात्कार वास्ते जो चिक्तकी
सावधानता है, तिसका नाम समाधान है । गुरु शासके
उपदेशदिपे जो पिश्वासहै. उस्तका नाम श्रद्धा है ॥
४ मुमुश्नुत्वनिरूपण ।
संसार ( जन्ममरण ) रूप घोर इुश्खदाई वनसे
मय उत्पन्न होकर सोक्षकी तीन्र इच्छा होना ॥
पूर्वोक्त भकार, विवेक, वैराग्य, शम, दम, उपरति
तितिक्षा, समाधान, भदा, तथा मुमुश्ुता, इन साधनों संयुक्त
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