जिनगुण मंजरी | Jingun Manjari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्१ वरसी दाने दे लड्े दीक्षा, संगमें एक हजारीरे भविजन- सुखकारी । २ । तमसे केवलज्ञानको साधी, कर्म सुभट कोटारीरे भविजन सुखकारी । रे । करी उपदेश भविक जनतारे, भवसागरसे पारीर भविजन सुखकारी । ४ । एकलाख साधु लड़ संगमें शीघ्र वया शिवनारीर भविजन सुखकारी । ५ । आतम लक्ष्मी बष बधाई पाई श्री जिनरा्ररे भविजन सुखकारी । ६ । बल्लभ सेवा श्री जिनवरकी ललित तिलक हितकारीर भविजन सुखकारी । ७ । चंद्रप्रभ जिन स्तवन । चाल होरी । श्रीचंद्र प्रभ जिनराज प्र तुम दरिशन अति सुखकारी ॥टक।। अष्टादश दुषणके त्यागी, द्वादश गुणक धारी श्री ॥॥। चंद्र समान सोम्यता तोरी, मोहे भवि नरनारी-श्री ।२॥। चंद्रावतीमें जन्म लीयो है, चंद्र लंडन बलिहारी श्री ॥रे॥।




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