पावन - प्रवाह | Pavan-pravah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
सूये, दोपक अग्नि, और चस्द्रमा का प्रकाश भी जिस
अज्ञानान्धकार को नए क्रग्े में असमथ हैं उस अन्घधकार को
विवेक ज्योति समूल नष्ट कर डालती है । इस लिये सूथे चन्द्रादि
से इस विवेक उमानि की तुलना कैसी ? यह तज सब से चढ़
कर है ।
बस
तंजानिवेशा: किल लौकिका ये,
ते लौकिकं ध्वान्तमशेषयन्ति ।
अम्यन्तरं यत्तिमिरं निहन्ति,
तज्ज्योतिरज्ञानहर॑ नमामः! | ४॥।
इस ससार में जितने भी लेज-पिरुड पदाथ है वे सब इस
जगन के बाहरी प्रतीयमान अन्धकार को ही नष्ट क्रसे है किन्तु
जो भीतरी अज्ञानान्थकार को भी नष्ट कर देती हैं बह शज्ञान-
नाशक ज्योति ही सर्वोत्तम है । उसी को हम नमस्कार करते है ।
यदन्धकाराख्यशिलां विशालां,
मिनति सद्योधवछिनति पंसाम् ।
पापान्यशेषाणि चथात्पयुक्तं,
तज्ज्योतिरस्माकमघानि हन्तु ॥४५॥
जो विवेक ज्योति श्पात्मा में प्रकट होते ही अज्ञानान्थकार
की विशाल शिला के टुकड़ २ कर डालती है श्रौर प्रयोक्ता पुरुपा
के सम्पूर्ण दुष्कृत्यों को नष्ट कर देती दे--बहीं ज्याति हमारे भी
पापा को दूर करे ।
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