पावन - प्रवाह | Pavan-pravah

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Pavan-pravah by मिलापचंद - Milapchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) सूये, दोपक अग्नि, और चस्द्रमा का प्रकाश भी जिस अज्ञानान्धकार को नए क्रग्े में असमथ हैं उस अन्घधकार को विवेक ज्योति समूल नष्ट कर डालती है । इस लिये सूथे चन्द्रादि से इस विवेक उमानि की तुलना कैसी ? यह तज सब से चढ़ कर है । बस तंजानिवेशा: किल लौकिका ये, ते लौकिकं ध्वान्तमशेषयन्ति । अम्यन्तरं यत्तिमिरं निहन्ति, तज्ज्योतिरज्ञानहर॑ नमामः! | ४॥। इस ससार में जितने भी लेज-पिरुड पदाथ है वे सब इस जगन के बाहरी प्रतीयमान अन्धकार को ही नष्ट क्रसे है किन्तु जो भीतरी अज्ञानान्थकार को भी नष्ट कर देती हैं बह शज्ञान- नाशक ज्योति ही सर्वोत्तम है । उसी को हम नमस्कार करते है । यदन्धकाराख्यशिलां विशालां, मिनति सद्योधवछिनति पंसाम्‌ । पापान्यशेषाणि चथात्पयुक्तं, तज्ज्योतिरस्माकमघानि हन्तु ॥४५॥ जो विवेक ज्योति श्पात्मा में प्रकट होते ही अज्ञानान्थकार की विशाल शिला के टुकड़ २ कर डालती है श्रौर प्रयोक्ता पुरुपा के सम्पूर्ण दुष्कृत्यों को नष्ट कर देती दे--बहीं ज्याति हमारे भी पापा को दूर करे ।




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