कला के सरोकार | Kala Ke Sarokar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झंद्रेज भोसेके/कलाकार भौर समाज 5
व्यक्ति दूसरे हर व्यक्ति की तरह हो, हर व्यक्ति एक मशीन की तरह हो ।””
कलाकार, जो व्यक्तिगत दापित्व से कतराता है व कला के क्षेत्र में निजत्व-
हीन विशेषज्ञ की भूमिका निभाना चाहता है; सिफें कला के लिए हो प्रंघा 'मविष्य
सुजित नहीं कर रहा वह समूची दुनिया को वस्तुतः एक झौर भारामदेह स्थिति में ले जाना
चाहता है, जहां कला नहीं है, जहां सभी कुछ यांबिक है ।
एक कलाकार को सहज सामाजिक प्रकपंण इसी बात में निहित है कि उसका
ध्यक्तित्वि एक अभियंता, बाबू या सिपाही से मिन्न हूं वह झधिक स्पष्टवादी एवं
पूर्वग्रह मुक्त हूं। उसे लोग उन चीजों, म्रतावश्यक सत्यवादित। एवं लापरवाही, की मी छूट
दे देते है जैसा कि वे अन्य व्यक्तियी के साथ नहीं करते । एक लंबे धरे तक, हालांकि हमेशा
ऐसा नहीं था, कलाकार ने समाज मे एक मनमौजी की भूमिका निभाई हैं; कमोबेश एक
बच्चे की तरह या गाव के किसी ऐसे मूर्ख की तरह जो कल्पनाशील हो । जाहिर है कि
हरेक कलाकार यह नहीं चाहेगा कि लोग उसे प।गल समझें या. उससे तत्संबघित
व्यवहार करें; ऐसी स्थितियों में उसकी मांग होती है कि उसे किसी भ्रभिवंता था
चिकित्सक से श्रलग करके न देखा जाये ।
लेकिन कला की समूची परंपरा या कि इसका प्रधिकांश माग यही बताता है, कि
लोग ऐसे पागल पर ही नजर देते है जो समाज की परंपरागत रूप से स्वीकृत मान्प-
ताथ्ो को शिटकार दे; श्रौर इतनी स्पष्टवादिता कसा के ही क्षेत्र में समय है ।
अनात्मीय परिवेश व स्वचालित मशीनों में तब्दील होते जाने से श्रातंित हम प्ाज
झपनी अ्रंत.श्चेतना को भूलते जा रहे हैं, मावशून्य होते जा रहे हैं, भोर इन स्थितियों
में -जती कि मतोचिकिंत्सकों व दरशनशास्त्रियों की सलाह भी है --हमे कलाकार की ही
तरफ सहायता के लिए देखना है । इस पत्थरों की दुनिया में घह्दी हमारा ऐसा भाई है
जिसमे प्रभी संवेदगाएं बाकी हैं। वही ऐसा व्यक्ति है जो वन-प्रांतर रो गुजरते हुए
महज श्रपनी मंजिल के बारे में या धूमने से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के थारे में ही नहीं
सोचता, पूरी तन्मयता भ्ौर विवेक के साथ वृक्षों की ममंर ध्वनि भी सुनता है ।
विश्व की स्थिति उस समय इतनी बविपम ध्ीर तात्कालिक है दि. भकेली
कलाऊृतिया ही इस स्थिति में काफी नहीं हैं। हमें याद है कि पिछले कई
दशकों में हमे लगातार श्रनेक नयी कलाहतिया देसने को मिली श्रौर पुरानी कलाकृतिर”
क्रमश. पीछे छूटती गई क्योंकि नये जीवन संदर्मों मे उनका उतना मूत्य नहीं रह गः
था । बढ़ती हताशा के बीच हम श्राज साली पड़ी कला दौीर्घाधों को देखते हैं, माई
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