वैद मासिक पत्र | Vaidh Masik Patra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६० के वैदा के इस लेख में इमें इन दोनों प्रकार के चिकिस्सकों के मतामत पर कुछ भी चक्तब्य नहीं । दमाए श्वाशय केवल यद्दी है कि इन द्वितीय प्रकार के चिकिन्लकों की राय में यदद रोग तीन झाफक्रमणु किया करता है । इन आआक म्णी में से पहले से दूसरा श्र दूसरे से तीसरा जदयर दस्त दोता है | श्र ये लोग कहने लगे हैं कि इसके तीसरे झाकमणु का भय नहीं रद्दा। यदि फिर कभी इस दुप् का अआकामण संसार पर हुश्रा तो श्रव से तीस च्पे वाद होगा पहले नददीं । यदि यह सेग इम से पूछुकर शाक्रमणु करे सो इम तो इस से यददी कहेंगे फि ाप ससार पर झूपा कीजिए थौर मूल कर भी झपनी चेटट इसे दिखाने का दुन्लाइस न कीजिप । इस का यद्द दौरा चिश्वन्यापी था । संसार का कोई भी देश पेसानथा जद्दां इस की रुद्रमूत्ति का दर्शन लोगों को न छुआ हो | श्पने श्रन्यान्य छोटे चडे भाइयों के समान इसने भी झपने इस्तलाघय का नमूना दमारे दीन दीन देश को दिसाया कि सूच दिस्वाया । लोगों का कहना है कि प्लेग को भी झपनी मारकशक्ति के लिप इस के सामने हार माननी पड़ी । इतना सो हमने भी.दं खा कि सयकर से मयद्र प्लेग के श्राक्ममणों से भी न तो लोग इतने घवराये दी झौर न मरे दी थे जितने दस्खकी कृपा से घबरा गये श्रौर यमातय को प्रस्थान करगये । डर व दम थोडा सा घणन इस रोग की चिकित्सा और इस के लिकिस्सको के चिपय मैं करेगे । दमारे देखने में यदद आया कि जिन चिकित्सकों को कोई न पूछुना था; जो दिन भर शपने चिकित्सालय फे घरामदे में झाराम कुर्सी पर पर्ड २ समायारपत्र घा उपन्यास पढ़ कर छापने लमण्, का सदूव्यय करते थे , तथा जो घूप झाने पर घीरे २ अपनी कु्ती फो सरकाते जाते थे ये भी ;सूच पुजे। उन्हें भी दस मारने का अवकाश से मिला ।नफदनारायणं से मी उन की जेयें ्यूय मरी श्र प्रतिष्ठा भी उन्दें कम न मिली 1 पर जिन चिकित्सक को मामूली समय में भी झवकाश मुश्किल से मिलता था उन का तो कहना दी फ्या + “किसी चरतु की मांग बढ़जाने से उस का! मूस्य सदा यढ़ जाता है” यद्द सम्पश्तिगाल्र का एक साधारण नियम है। इस रोग के कारण मी चिशिस्सकों और दूदाइयो को मांग झाशातीत बढ़गई। झस्त, धन का मूरप भी चढ़जाना घाइिए था। सर यही पात इमारे देखने ं




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