निबंध - आलोक | Nibandh Alok

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध [ निबन्ध-आआलोक साधारणत: एक निबंध में दो मुख्य तत्त्व होते हैं--बिचार और भाषा-शंली । विचारों का ढाँचा सामान्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता हैं :-- (१) भूमिका--सब से पहली कठिनाई जो एक निबंधकार के सामने आती है, वह विषय का आरंभ करना हे । प्राय: विद्यार्थो इस संकोच में पड़ जाते हैं. कि वे अपना निबंध किस अ्रकार आरंभ करें और विषय का परिचय किस प्रकार करायें । सच पुद्धिचे तो यही चीज ऐसी है जो पाठक को निबंध पढ़ने की ओर आकर्षित करती है और वह वाध्य हो जाता है, कि पुरा निबंध पढ़ डाले । अँग्रेजी की एक कट्टावत है, “श्रेष्ठ आरंभ आधे काये की समाप्ति है ।” इसे इस प्रकार समझिये कि यदि राज, दीवार बनाने में पहली ईंट टेढ़ी रख दे, तो सारी दीवार टेढी हो जायेगी। .. ... विषय परिचय कराने का यह अर्थ नहीं कि आप अपने विषय की कोई ताकिक परिभाषा दें, बल्कि मतलब यह है कि विषय का परिचय ऐसे आकर्षक ढंग से और श्रभावोत्पादक दाब्दों में करायें कि पाठक पुरा निबंध पढ़ने के लिये आकुल हो जाय और जान ल कि बात क्या है । “हमारी मसहरी”, “'भौं”” “चारपाई” आदि निबंघों की भुमिकाओं का आकषंण और प्र भावोत्पादकता उल्लेखनीय 'मौं” के ये वाक्य पढ़िये । ;४ यद्यपि हमारा घन, बल, भाषा इत्यादि सभी निर्जीव हैं, तो भी यदि पराई भँवे चढ़ाना छोड़ दें, दृद्ता से कटिवद्ध हो कर वीरता से थँबें तान कर देशहित में सनद्ध हो जय तो परमेदवर अवश्य हमारे उद्योग का फल दे* * *?? “चार पाई” की कुछ पक्तियाँ पढ़िये-- चारपाई और धार्मिक ढोंग तो हमारा ओइना और बिछौना हैं । हम उसी पर पैदा होते हैं, यहीं से जेल जाते हैं, कौंसिल या श्रस्युलोक का रास्ता लेते है। चारपाई हमारी घुट्टी में पड़ी है । हम इसी पर जुलाब का काढ़ा पीते हैं और इस के परिणाम भुगतते हैं * *?? यह रोचकता और आकर्षण पैदा करने के लिये कई साधनों से काम लिया जाता और उनमें प्रगरभ भाषा का प्रयोग बहुत सामान्य है । कु... समय मय भय वन समर नमरावरमिवििपितिय डा




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