पुरुषार्थ | Pursartha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
673
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर्व
मा
नई .
रद मध्तावना
ग्रन्थ-विषय-झालोचन
यह सद-ग्रम्थ, अपने विषय को स्वत: अति स्पडता से प्रकड परत
है | एक बार पढ़ने से ही सु सजवों को यह सुज्ञात होंगा । इस अर्थ
के उपक्रम और उपसंहार को देखने से, तथा २४४--२५० पृष्ठों पर
लिखित,” “कुछ निजसस्बन्धी, कुछ शा्थविषयक, निवेदन” शीषक
वाली रिप्यणी से भी, झन्थकार आर अ्रस्थ के सम्बन्ध की बहुत सी
ज्ञातब्य बातें विदित होंगी । यहाँ कतिपय विशेष अवधेय विषयों पर ही
पाठकों का ध्यान आकृट्ट करना चाहता हूँ, वह भी बहुत संक्षेप से ।
ग्रत्थप्रणयन का प्रयोजन
श्रद्धय भगवान् दास जी के अन्थ निर्माण का प्रव्तेक हेतु लोक-सेवा
साव ही होता है; भौर प्राय: भाप के ग्रन्थों का 'उपक्रम, किसी न किसी
व्याख्यान से होता हैं, जो किसी विशेष अवसर पर, किन्दीं सज्नों के
अनुरोध वा सूचना से किया गया | इस अन्थ के अध्यायों के आरम्भ में
जो टिप्पणियाँ छिख्डी हैं, उन से इन ठोनों बातों का संकेत स्पष्ट है ।*
विचार पद्धति
यद्यपि अध्यात्सविंद् अन्थकार की सदसदुविवेकिनी बुद्धि मे विचार
की स्वतन्त्रता है; तथापि आप, सुख्यत:, एकचाक्यता-साघक सीमाँसक
_ विचार-पद्धति से ही अ्न्थ लिखते हैं; और दब्दार्थ के निवंचन के छिये
नैरुक्त पद्धति का भी -बहुघा प्रयोग करते हैं; तथा शास्त्रार्थ की स्पष्टता
के छिये, वस्तूपस्थापन से, ऐतिहासिक विमद-पद्धति की भी सहायता
छेते हैं । दाब्द और जर्थ को 'तुलाशत इव' अच्छी तरह जाँच कर,
यथार्थ प्रयोग . करने मे तो आप नितान्त कुशल हैं । संस्कृत तद्भव
तत्सम शब्दों के साथ तुल्याथेक अँग्रेज़ी, फ़ारसी, भादि शब्दों को भी
लिख देने से विभिन््त-भाषा-भाषी बहुजन-समाज को कितना लाभ होने
१ यह प्रथम संस्करण के अंक हैं; श्रब इस नये संस्करण मे यह.
टिप्पणी, 'इस द्वितीय संस्करण का प्राककथन” मे शामिल कर दी गई है । .
२ इस नये संस्करण मे, भूल से ये टिप्पणियाँ कभी अध्याय के अन्त
में छाप दी गईं हैं, कभी बिल्कुल छूट गई हैं।
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